कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने रायपुर में ऐलान किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वह यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI)को लागू करेगी। कांग्रेस की कर्जमाफी के वादे का अंतरिम बजट में जवाब देने की तैयारी कर रही मोदी सरकार के लिए राहुल का यह दांव एक और सियासी चुनौती होगा।
खबरों के अनुसार 1 फरवरी में पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट में मोदी सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का ऐलान कर सकती है। पूर्व वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने 2016-17 के आर्थिक सर्वे में इस योजना की सिफारिश की थी। आइए जानते हैं क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI)।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) : आदर्श स्थिति है कि समाज के हर सदस्य को जीवन-यापन के लिए न्यूनतम आय का प्रावधान होना चाहिए। यूनिवर्सल बेसिक इनकम का मतलब है सरकार की तरफ से देश के हर नागरिक को एक न्यूनतम मासिक आय देना। देश में सभी गरीब परिवारों के लिए इसे लागू करने की बातें होती रही हैं।
क्यों पड़ी लागू करने की आवश्यकता : वैश्विक स्तर पर असमानता तेजी से बढ़ रही है। बेरोजगारी भी लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा व्यवस्था को सहारा नहीं मिलता तो असमानता और बेरोजगारी सबसे बड़ी चुनौती होगी। भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था, वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है। जो देश के लोगों के औसत जीवन स्तर को दर्शाता है, इसलिए भी यूबीआई की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
कैसे काम करेगा फॉर्मूला : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार भविष्य की इस योजना के तीन पक्ष हैं- सार्वभौमिक, बिना शर्त और संस्थागत। इसके आकलन के लिए गरीबी रेखा निर्धारित करने का सुरेश तेंदुलकर फॉर्मूले से 7620 रुपए प्रतिवर्ष तय किया गया है। हाल ही में लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने यूबीआई का मसला उठाते हुए कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए 10 करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 3,000 रुपए डाले जाने चाहिए। फिलहाल सरकार हर मंत्रालयों से राय ले रही है। एक दूसरा सर्वे कहता है कि इस दर पर यूबीआई को लागू करने पर जीडीपी का 4.9 प्रतिशत खर्च सरकारी खजाने पर पड़ेगा।
इंदौर के गांवों में हुई थी शुरुआत : मध्यप्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर ऐसी स्कीम को लागू किया गया था। इस योजना के बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आए। इंदौर के 8 गांवों की 6,000 की आबादी के बीच 2010 से 2016 के बीच इस योजना का प्रयोग किया गया था। इसमें पुरुषों और महिलाओं को 500 और बच्चों को हर महीने 150 रुपए दिए गए। इन 5 सालों में इनमें अधिकतर ने इस स्कीम का लाभ मिलने के बाद अपनी आय बढ़ा ली।