भाजपा को यूपी में बहुमत मिलने के साथ ही यह प्रश्न अहम हो गया है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? इस पर यूपी की जनता के साथ-साथ पूरे देश की निगाहें भी टिकी हैं।
अमित शाह : प्रारंभ में इस बात की भी अटकलें लगाई गई थीं कि यूपी में जीत होने पर मुख्यमंत्री अमित शाह होंगे, लेकिन मोदी सरकार शायद ही अमित शाह को यूपी का मुख्यमंत्री बनाए क्योंकि प्रधानमंत्री की निगाह में शाह की भूमिका किसी राज्य के मुख्यमंत्री से बहुत बड़ी है और वे प्रधानमंत्री की सहायता करने के लिए दिल्ली में ही रहेंगे। आगामी दो-ढाई वर्षों में कई राज्यों में चुनाव होने हैं और वर्ष 2019 में मोदी फिर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे तो उनके लिए मोदी की सहायता करना ज्यादा अहम होगी। इसलिए यूपी का मुख्यमंत्री कुछ अन्य दावेदारों में से कोई एक हो सकता है।
राजनाथ सिंह : देश के गृहमंत्री और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथसिंह को यूपी की कमान सौंपी जा सकती है। राजनाथ पार्टी के भीतर साफ-सुथरी छवि और देश मे मजबूत नेता माने जाते हैं और उनके नाम पर कोई विरोध नहीं होगा। यूपी से आने वाले राजनाथ की पहचान बड़े ठाकुर नेता के तौर पर भी है। हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि राजनाथ राष्ट्रीय राजनीति छोड़कर राज्य की राजनीति में नहीं आना चाहेंगे क्योंकि केंद्र सरकार में उन्हें नंबर दो का कद मिला हुआ है और वो इसे कम नहीं करना चाहेंगे।
केशव प्रसाद मौर्य : यूपी भाजपा के अध्यक्ष और फूलपुर से लोकसभा सांसद केशव प्रसाद मौर्य भी सीएम पद की रेस में आगे हैं। केशव प्रसाद पिछड़ी जाति मौर्य से आते हैं जिसकी तादाद गैर यादव जातियों में सबसे अधिक है। संघ के सबसे करीबी और विश्व हिन्दू परिषद् के तेज तर्रार नेताओं में शुमार केपी मौर्य ने पार्टी के लिए धुआंधार प्रचार किया है। चुनाव में मौर्य अच्छे वक्ता साबित हुए और उन्होंने पार्टी के लिए सबसे ज्यादा 155 चुनावी सभाएं की हैं। वे भाजपा में पिछड़ी जाति का चेहरा कहे जाते हैं और मौर्य को अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी की खोज माना जाता है और ये दोनों ही बड़े नेताओं के करीबी माने जाते हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए मौर्य का नाम इसलिए भी तेजी से सामने आया है क्योंकि चुनाव परिणामों के बीच उन्हें दिल्ली तलब किया गया है। हालांकि आपराधिक मामले केशव की राह में रोड़ा बन सकते हैं।
महंत आदित्यनाथ : गोरखपुर से भाजपा सांसद महंत आदित्यनाथ पार्टी का फायर ब्रांड हिन्दूवादी चेहरा माने जाते हैं। आदित्यनाथ लगातार कई बार सांसद रहे हैं और यूपी में प्रचारक के नाते सबसे ज्यादा इनकी मांग रही है। पूर्वांचल का बड़ा चेहरा हैं और खुलकर मंच से सांप्रदायिक भाषण भी देते हैं। आदित्यनाथ पार्टी का लोकप्रिय हिंदू चेहरा हैं और छात्र जीवन से ही विद्यार्थी परिषद् में काम कर रहे हैं। पहले भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं, इस बार इनका दावा मजबूत है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ ने जमकर प्रचार किया है। उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में कई मुकदमे भी दर्ज हैं।
उमा भारती : मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती भी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। बुंदेलखंड में अच्छा दबदबा रखने वाली उमा पिछड़ी जाति लोधी से आती हैं साथ ही वे महिला हैं। इस नाते उन्हें भी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। साथ ही उनकी छवि एक हिन्दूवादी नेता की है। यह बात भी उनके पक्ष में जा सकती है। हालांकि उनका उग्र रवैया उनकी राह में रोड़ा बन सकता है।
श्रीकांत शर्मा : मथुरा से चुनाव जीतने वाले और पार्टी के प्रवक्ता भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि वे पार्टी की रीति और नीतियों को बहुत ही अच्छे तरह से मीडिया के समक्ष रखते हैं। साथ ही संघ की 'गुड लिस्ट' में भी शामिल हैं।
संतोष गंगवार : केद्रीय मंत्री और बरेली से सांसद संतोष गंगवार पार्टी के भरोसेमंद नेता हैं। विनम्र छवि वाले नेता के तौर पर इनकी पहचान है और संतोष गंगवार को संगठन का माहिर आदमी माना जाता है। लगातार पांच बार से सांसद गंगवार कुर्मी जाति से आते हैं और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में रहे हैं। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याणसिंह के बाद बीजेपी में पिछड़ी जाति का सबसे बड़ा चेहरा माने जाते हैं। इनकी पहचान भी केशव मौर्य की तरह हिंदूवादी नेता की नहीं है ना ही प्रदेश में कभी ये मुख्यमंत्री की होड़ में रहे हैं लेकिन ये पार्टी के डार्क हॉर्स जरूर साबित हो सकते हैं।
मनोज सिन्हा : मनोज सिन्हा पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आते हैं और भूमिहर जाति से ताल्लुक रखते हैं। केंद्रीय मंत्री सिन्हा को मोदी कैबिनेट में रेल राज्यमंत्री मंत्री का जिम्मा सौंपा गया है। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे और बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे चुके हैं। सिन्हा को काफी सुलभ और सहज नेता माना जाता है और बड़े नेताओं के पसंदीदा नेता भी हैं। हालांकि यूपी के सामाजिक समीकरण इनके पक्ष में नहीं है और संगठन में इनकी क्षमता कम मानी जाती है।