महोबा। पान और पानीदारी के लिए देश विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाला उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का महोबा विकास की नई उम्मीदों के साथ 23 फरवरी को अपने नए रहनुमाओं का चुनाव करेगा।
सूबे की 17वीं विधानसभा के लिए चौथे चरण के मतदान में यहां गुरुवार को वोट डाले जाएंगे। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन यहां विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने मतदाताओं को लुभाने की भरपूर कोशिश की। रोड शो और रैलियों में फ़िल्मी सितारों के डुप्लीकेट के सहारे भीड़ जुटाकर खुद को मजबूत दर्शाने की कोशिश की गई। गांव-गांव में नुक्कड़ सभाओं में राजनीति के शूरमाओं ने अपने चुनावी तरकस के सारे तीर वोटरों पर चलाए।
सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित बुंदेलखंड के अति पिछड़े महोबा में समस्याओं की लंबी फेहरिस्त होने के बावजूद चुनावो में आश्चर्यजनक रूप से यह कभी मुद्दा नहीं बन सकी। हर बार मतदान की तिथि के नजदीक आते-आते यहां वोटर अपनी सभी मुश्किलों को त्याग कर राजनीतिक दलों द्वारा बिछाई गई जात-पात की बिसात में उलझ कर रह गया।
जातीय समीकरणों के बलबूते पर यहां की दोनों चरखारी और महोबा विधानसभा सीटों पर आजादी के बाद से ज्यादातर कांग्रेस कब्जा जमाती रही। बाद में दो दशकों से सपा और बसपा द्वारा बारी-बारी से इन्हें बाँट लिया जाता रहा।
वीरभूमि के नाम से विख्यात महोबा के बाशिंदों को इस बात का मलाल है कि चुनाव जीतने के बाद किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस क्षेत्र के विकास को लेकर कोई सुध नहीं ली। आजादी के साठ सालों में यहां रोजी रोजगार के नए संसाधनों की अवस्थापना तो दूर जीविकोपार्जन का एक मात्र स्रोत खेती किसानी में सुधार पर भी ध्यान नहीं दिया।
माननीय का रुतबा हासिल करने वालो ने अवैध और अनियमित खनन से अपनी तिजोरियां भरी और पर्यावरण प्रदूषण से प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो कर्ज, गरीबी, भुखमरी, बीमारी आदि कारणों से अन्नदाताओं के आत्महत्या करने की घटनाओं के बीच लोग क्षेत्र छोड़ पलायन को मजबूर होते रहे।
रबी की फसल कटाई का समय होने और अन्ना पशुओं से फसल बचाने को किसानों के परिवार समेत खेतो में डेरा डालने के कारण चुनाव को लेकर पूरे बुंदेलखंड में इस बार उदासीनता का माहौल है। लेकिन मतदाताओं में व्याप्त गहरी खामोशी से राजनीतिक दल खासे बेचैन हैं।
बुंदेलखंड में विकास के लिए प्राधिकरण बनाने और किसानों का कर्ज माफ किये जाने के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में लाकर भाजपा ने यहां मतदाताओं की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की है तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में पानी की समस्या के समाधान के लिए यहां तालाबों की खुदाई कराये जाने और सूखा पीड़ितों को खाद्यान्न पैकेट वितरण के कार्यों के सहारे वोटरों का दिल जीतने का प्रयास किया है।
बसपा अध्यक्ष मायावती ने भी अलग बुंदेलखंड राज्य के मुद्दे को हवा दे लोगो को अपने पाले में लाने की कोशिश की है। वोटरों को प्रभावित करने में कामयाब कोण रहा यह तो वक्त बताएगा परंतु सभी दलों में दलबदलू उम्मीदवारों को लेकर कार्यकर्ताओ की नाराजगी तथा स्थानीय स्तर पर गुटबाजी एवं भितरघात चुनाव में बड़ा गुल खिलाएगी यह तय है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चरखारी सीट से चुनाव लड़ने की अंतिम समय तक रही चर्चाओं के बाद सपा ने यहां मौजूदा विधायक उर्मिला राजपूत को फिर प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा से पूर्व सांसद गंगा चरण राजपूत के पुत्र ब्रजभूषण सिंह मैदान में है। बसपा से जितेंद्र मिश्रा उम्मीदवार हैं।
उधर, महोबा में भाजपा ने बसपा छोड़ पार्टी में आए राकेश गोस्वामी और बसपा ने कांग्रेस को बाय करने वाले अरिमर्दन सिंह को टिकट दे चुनाव मैदान में उतारा है।
पूर्व मंत्री सिद्ध गोपाल साहू सपा से एक बार फिर मैदान में है। वर्ष 2014 में उमा भारती द्वारा रिक्त किए जाने के बाद चरखारी सीट पर सपा ने दो बार के उपचुनाव में जीत दर्ज की। बसपा यहां अपने गढ़ को बचाने की लड़ाई लड़ रही है तो इस बार भाजपा की नजर दोनों सीटे कब्जाने पर है। जिले की दोनों सीट में कुल 6 लाख 20 हजार 476 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमे महिला मतदाताओं की संख्या 2 लाख 82 हजार 879 है। (वार्ता)