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अखिलेश के लिए यह चुनाव अग्नि परीक्षा से कम नहीं

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लखनऊ। उत्तरप्रदेश राज्य विधानसभा का चल रहा चुनाव मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। 
25 वर्ष की उम्र पार कर रही सपा ने अभी तक सभी चुनाव मुलायम सिंह यादव की अगुआई में लड़ा। यह पहला चुनाव है जिसमें अखिलेश यादव पार्टी के चेहरे ही नहीं बल्कि आलामालिक हैं। पार्टी की हार या जीत दोनों की जिम्मेदारी उन्हीं पर आएगी। 
 
राजनीतिक मामलों के जानकार राजेन्द्र सिंह का कहना है कि अपनी स्थापना के बाद 4 बार सूबे की सत्ता संभाल चुकी सपा की बागडोर अब पूरी तरह अखिलेश यादव के हाथ है। पार्टी के जीतने का सेहरा उन्हीं के सिर पर बंधेगा, लेकिन हार का ठीकरा भी उन्हीं पर फूटेगा इसलिए उनके लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। 
सामाजिक विश्लेषक रमाशंकर अग्निहोत्री कहते हैं कि मुख्यमंत्री को बाहरी से ज्यादा उनके कुनबे से ही खतरा है। पार्टी की हालिया घटनाओं पर नजर डालें तो उनकी 'लेगपुलिंग' में घर वाले ही लगे हैं। पार्टी संस्थापक और मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव ने अनुज शिवपाल सिंह यादव और छोटी बहू अपर्णा यादव के क्षेत्रों के अलावा कहीं चुनाव प्रचार नहीं किया। पहले और दूसरे चरण में वे प्रचार के लिए कहीं निकले ही नहीं।
 
सपा संस्थापक की मुस्लिमों में अच्छी पैठ मानी जाती है। पहले और दूसरे चरण वाले चुनाव क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी थी। उनका मानना है कि यदि मुलायम सिंह यादव पहले और दूसरे चरण के चुनाव वाले क्षेत्रों में निकलते तो सपा के पक्ष में स्थितियां और बेहतर हो सकती थीं। 
 
मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में अयोध्या में 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को चली गोली ने उनके प्रति मुसलमानों में विश्वास बढ़ाया था। इसका लाभ भी उन्हें हर चुनाव में मिलता रहा है, लेकिन इस बार उनका प्रचार में नहीं के बराबर निकलना खासतौर पर मुस्लिम मतदाताओं पर फर्क डाल सकता है। 
 
6 महीने से अधिक चले पारिवारिक और पार्टी के झंझावातों में मिली जीत से अखिलेश यादव की राजनीतिक छवि मजबूत, दृढ़निश्चयी बनकर तो उभरी है, लेकिन पारिवारिक लड़ाई के तुरंत बाद हो रहे इस चुनाव के परिणाम उनके राजनीतिक भविष्य के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। (वार्ता)

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