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दिलचस्प और हैरतअंगेज हो सकते हैं पूर्वी उत्तरप्रदेश के चुनाव नतीजे

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उमेश चतुर्वेदी

उत्तरप्रदेश में 4 दौर के मतदान बीत चुके हैं। 5वें चरण का इंतजार जारी है। अब पूर्वी उत्तरप्रदेश के ज्यादातर इलाकों में चुनाव होना बाकी है। इस इलाके में करीब 170 विधानसभा सीटें हैं। 
पूर्वी इलाके का दौरा करते वक्त एक बात साफ नजर आती है। अंग्रेजी में जिसे पोल प्वॉइंट कहा जाता है यानी प्रमुख पक्ष भारतीय जनता पार्टी है। टिकट बंटवारे की तमाम गलतियों के बावजूद मुख्य मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी ही है। सब उसके खिलाफ ही लड़ रहे हैं। कहीं मुकाबले में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है, तो कहीं बहुजन समाज पार्टी।
 
चुनावी गणित को जो समझते हैं, उन्हें पता है कि आमतौर पर मुख्य मुकाबले वाले दल को ही ऐसे चुनावों में फायदा होता है। नुकसान की गुंजाइश तब होती है, जब मुख्य मुकाबले वाले दल को समन्वित तौर पर चुनौती दी जाती है लेकिन इस बार ऐसा नजर नहीं आ रहा है। भारतीय जनसंचार संस्थान में प्रोफेसर आनंद प्रधान ने इन पंक्तियों के लेखक से हाल ही में कहा कि भारतीय जनता पार्टी का मुख्य मुकाबले में होना अभी तो उसकी बड़ी उपलब्धि है।
 
बेशक, इस बार भी जातिगत उम्मीदवारों को ही वोट देने पर जोर है या तैयारी है लेकिन मतदाता इस बारे में चुप हैं। इन दिनों शादी-ब्याह का जोर है। चूंकि मतदान इसी दौरान होना है इसलिए प्रत्याशी भी शादी-विवाह के समारोहों में शामिल होने आ रहे हैं।
 
बलिया जिले के बांसडीह विधानसभा सीट से राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार रमेश पांडेय एक शादी समारोह में ऐसे ही पहुंच गए। शादी किसी ब्राह्मण परिवार की थी। नाम में पांडेय लगा होने के बावजूद उस समारोह में बार-बार अपने गांव की दुहाई दे रहे थे। यहां बता देना जरूरी है कि जिस सूर्यपुरा गांव के वे निवासी हैं, वह ब्राह्मण बहुल है। 
 
दरअसल, पांडेयजी बार-बार इसी वजह से अपने गांव का नाम ले रहे थे ताकि ब्राह्मण मतदाता उनकी ओर मुखातिब हो सकें। चूंकि पूर्वी इलाके में राष्ट्रीय लोकदल को कोई पूछने वाला नहीं है, लिहाजा लगता नहीं कि उनका चुनाव निशान हैंडपंप किसी इलाके से वोटररूपी 'पानी' निकाल पाएगा। दरअसल, जातियों का वोट भी बहुत कुछ पार्टी पर निर्भर कर रहा है। 
 
बांसडीह विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी का मतदाता स्वीकार नहीं कर पाया है इसलिए गत दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा रहीं और पिछले चुनाव में राज्य के मंत्री रामगोबिंद चौधरी को जोरदार टक्कर दे चुकीं केतकी सिंह जनता के दबाव पर निर्दलीय मैदान में हैं। इसी तरह रामगोबिंद चौधरी अखिलेश यादव के उम्मीदवार हैं। जब शिवपाल यादव का कुछ दिनों के लिए दबदबा बना था तो उन्होंने रामगोबिंद चौधरी का टिकट काटकर नीरज सिंह उर्फ गुड्डू को दे दिया था लिहाजा गुड्डू भी मैदान में हैं।
 
हैरतअंगेज यह है कि कांग्रेस की दबंग राजनीति के दौर में इलाके से विधायक और कांग्रेसी मंत्री रहे जिस ब्राह्मण बच्चा पाठक का रामगोबिंद विरोध करते रहे, वे अब गठबंधन के चलते उनके साथ हैं। इसके बावजूद ब्राह्मण मतदाता रामगोबिंद के लिए पसीजता नहीं दिख रहा है। वहीं एक बार बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे शिवशंकर चौहान फिर से मैदान में हैं इसलिए मुकाबला 5 कोणीय हो गया है, हालांकि असली मुकाबला नीरज सिंह को छोड़कर 4 लोगों में दिख रहा है।
 
बलिया की फेफना सीट पर पिछले चुनाव में जो संग्राम यादव बसपा के उम्मीदवार थे, अब वे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। जो अंबिका चौधरी समाजवादी राजनीति की धुरी थे, वे अब बसपा के उम्मीदवार हैं और उन्हें पटखनी देने वाले उपेन्द्र तिवारी मैदान में हैं ही। इस मुकाबले में अभी तक पलड़ा भारतीय जनता पार्टी के विधायक उपेन्द्र तिवारी का ही दिख रहा है।
 
बलिया की एक मशहूर सीट बैरिया भी रही है जिसका पहले नाम द्वाबा था। इस सीट से विमान अपहरण करने वाले कांग्रेसी भोला पांडेय विधायक रह चुके हैं। इसी विधानसभा सीट के इलाके में धनबाद के माफिया रहे सूरजदेव सिंह का गांव है। भदोही के भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और बलिया के सांसद भरत सिंह इसी इलाके से आते हैं। 
 
भरत सिंह ने सूरजदेव के परिवार को टिकट दिलाने के लिए जोर लगा रखा था लेकिन टिकट मिला है इंटर कॉलेज में अध्यापक और पूर्व संघ कार्यकर्ता सुरेन्द्र सिंह को। समाजवादी पार्टी ने जयप्रकाश अंचल को मैदान में उतारा है तो बीएसपी ने जवाहर प्रसाद वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है। इसी तरह बलिया सदर सीट से समाजवादी सरकार में मंत्री रहे नारद राय इस बार बीएसपी के उम्मीदवार हैं तो समाजवादी पार्टी ने रामजी गुप्ता को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी ने अनाम से चेहरे आनंद शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है। 
 
उम्मीदवारों को देखें तो यहां मुकाबला नारद राय और रामजी गुप्ता में नजर आ रहा है। हाल के अतीत तक दोनों एक-दूसरे के सहयोगी होते थे लेकिन यह ऊपरी पहलू है। कुछ जातियां ऐसी गोलबंद हुई हैं कि वे जिस दल के प्रति प्रतिबद्ध हैं, उसे छोड़ने के मूड में नहीं हैं इसलिए ऊपर से नजर आ रहे ये मुकाबले हकीकत में किसी और समीकरण में बदलते नजर आ सकते हैं इसलिए यह कह पाना कि किसकी जीत होगी और किसकी हार? कम से कम गंभीर सोच रखने वाले लोग इसका दावा करने से चूक रहे हैं।
 
बेशक, उम्मीदवारों के स्तर पर ऐसी स्थिति नजर आ रही हो लेकिन पार्टी स्तर की बात होते ही हालात कुछ और नजर आने लगते हैं। मतदाता का रुख भी अलग नजर आ रहा है। इस वजह से चुनाव पंडितों को कम से कम दिलचस्प मुकाबले और नतीजों के लिए तैयार रहना होगा।

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