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वाराणसी में 85% प्रतिशत प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सके

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संदीप श्रीवास्तव

, सोमवार, 6 मार्च 2017 (13:59 IST)
- संदीप श्रीवास्तव
 
शिव की नगरी काशी जिले में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं और यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। चुनाव आते ही मधुमक्खी की तरह नए-नए चेहरे व नई-नई पार्टियां दिखने लगती हैं। उसमें कुछ चेहरे तो ऐसे होते हैं या तो उन्हें चुनाव लड़ने की बेकरारी इतनी होती है कि चाहे उन्हें कोई पार्टी मिले या ना मिले, उन्हें तो चुनाव लड़ना ही है।
वाराणसी के पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में छोटी-बड़ी पार्टियों को मिलाकर 149 प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में उतरे थे। जीतना तो केवल 8 प्रत्याशी को ही था, 141 प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। 
 
लेकिन 85% प्रतिशत ऐसे प्रत्याशी थे, जो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे। केवल 23 प्रत्याशी ही ऐसे थे, जो अपनी जमानत राशि बचा पाए थे जबकि इस विधानसभा चुनाव में जिले की कई विधानसभा सीटों पर बड़े-बड़े दलों के प्रत्याशियों की भी जमानत जब्त हो गई थी। उनमें से बनारस की उत्तरी विधानसभा सीट पर 24 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई  थी। 
 
दक्षिणी सीट पर 10 प्रत्याशी अपनी जमानत खो दिए। कैंटोन्मेंट सीट पर बसपा प्रत्याशी सहित 21 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। जिले की सेवापुरी सीट पर सपा, बसपा व अपना दल के  प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। रोहनिया सीट से भाजपा, कांग्रेस व सपा सहित 20  प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। पिंडरा सीट से भाजपा व सपा के प्रत्याशियों तक की  जमानत जब्त हुई। अजगरा सीट से भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। जिले की 8वीं विधानसभा सीट शिवपुरी से भाजपा सहित 11 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।
 
ऐसी स्थिति में कहीं मुख्य रूप से पार्टी द्वारा गलत प्रत्याशी चुनाव के कारण पार्टी की छवि धूमिल होती है, तो कहीं नवसृजित पार्टियों के बैनर के कारण प्रत्याशियों की छवि धूमिल होती है जिसे मतदाता हर स्थिति में नकारते ही हैं।

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