उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर मतदान होने में अब महज कुछ घंटों का समय शेष बचा है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चुनावी शोर को देख अंदाजा लगाना मुश्किल है कि 10 मार्च को जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा। हर बदलते दिन के साथ राज्य में सियासी समीकरण बदल रहे है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सपा और भाजपा के साथ मुकाबले को त्रिकोणीय बन रही मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी। विधानसभा चुनाव में दबे पांव एंट्री करने वाली मायावती की पार्टी बसपा क्या भाजपा और सपा का गेम बिगाड़ सकती है और मायावती एक बार फिर किंगमेकर की भूमिका में नजर आएगी यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है।
1-मायावती का मजबूत बेस दलित वोट बैंक-मायावती का पार्टी बहुजन समाज पार्टी जो अकेले दम पर चुनावी मैदान में है,उसकी सबसे मजबूत ताकत उसका कैडर बेस वोट बैंक है। उत्तरप्रदेश के कुल वोट बैंक में 21 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाला दलित वोटर मायावती का बेस वोटर बैंक माना जाता है। जिसमें अति पिछड़ा दलित के साथ-साथ अब अति पिछड़ा वर्ग के साथ आने से बसपा चुनाव नतीजों में कोई भी बड़ा उलटफेर कर सकती है। अपने बेस वोट बैंक की इसी ताकत के चलते मायावती खमोशी के साथ अपनी चुनावी रणनीति के साथ मैदान में उतर आई है।
मायावती ने मिशन 2022 के लिए अपनी पहली चुनावी रैली दलितों की राजधानी माने जाने वाले आगरा में की और दावा की पार्टी की चुनावी तैयारी 2007 की तरह ही है और बसपा एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती लंबे समय से खमोशी के साथ अपने कैडर को मजबूत कर रही थी और अब चुनावी रैली के साथ अपने कैडर को एक्टिव करने के साथ विधानभा चुनाव में प्रदेश के 86 रिजर्व सीटों पर खासा फोकस कर दिया है।
2-2007 वाला सोशल इंजीनियरिंग का विनिंग कार्ड-ऐसे में जब उत्तरप्रदेश का विधानसभा चुनाव पूरी तरह जातिगत राजनीति (कास्ट पॉलिटिक्स) पर आकर टिक गया है। तब मायावती की पूरी चुनावी बिसात जातिगत वोटों के साधने पर टिकी हुई है। उत्तरप्रदेश में 21 फीसदी दलित वोट बैंक को मायावती अपनी पार्टी का सबसे बड़ा जानाधार मानती है। इसके साथ मायावती की नजर 12 फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक पर टिकी हुई है। अगर जातीय समीकरण की बात करें तो कुल वोट बैंक में 21 फीसदी वोटर दलित, 12 फीसदी ब्राह्मण मायावती का 2007 में अपनाया हुआ विनिंग सोशल इंजनियिरिंग का फॉर्मूले है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को अपनाने का सबसे बड़ा कारण यहीं वोट बैंक का गणित है। मायावती इस बार फिर 100 के करीब ब्राह्मण चेहरों को चुनावी मैदान में उतरी है।
विधानसभा चुनाव में मायावती की नजर अपने कोर वोटर दलित के साथ भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मण वोटरों पर टिकी है। दरअसल मायावती की पार्टी बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का एलान एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। 2007 में जिस ब्राह्मण और दलित गठजोड़ के विनिंग फॉर्मूले ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था पार्टी इस बार भी उसी रणनीति पर काम कर रही है।
मायावती ने आगरा की रैली में कहा कि 'बसपा को सत्ता की रेस से बाहर समझना ठीक वैसी ही बड़ी भूल साबित हो सकती है. जो 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के सहारे करिश्मा करने से पहले राजनीतिक दलों और मीडिया ने की थी।
अगर इतिहास को देखे तो 2007 में बसपा ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे थे और इसमें करीब आधे 41 जीतकर विधानसभा पहुंचे थे और इसके बल पर बसपा ने 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। मायावती अगर इन दोनों वोट बैंक को एकजुट रखने में सफल हुई तो वह 2022 में 2007 वाला करिश्मा दोहरा सकती है।
3-उम्मीदवारों के चयन का फॉर्मूला- बसपा के विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति और तैयारी भी अन्य पार्टियों से काफी अलग होती है। मायावती सामान्य तौर पर चुनाव से तीन से छह महीने विधानसभा प्रभारी नियुक्त कर देती है और अधिकतर यहीं प्रभारी विधानसभा चुनाव में उस विधानसभा से पार्टी प्रत्याशी होते है। ऐसे में विधानसभा प्रभारी बसपा के कैडर बेस वोट बैंक को मजबूत करने के साथ चुनाव के लिए तैयारियों का काफी वक्त मिल जाता है। इसके साथ मायावती ऐसे व्यक्तियों को पार्टी प्रत्याशी बनाती है जिनकी व्यक्तिगत तौर पर क्षेत्र में पकड़ होती है और उनका अपना जनाधार होता है। ऐसे में चुनाव तैयारियों के लिए काफी लंबा वक्त मिल जाने से
4-सामाजिक समीकरण का साधने की कवायद-2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने टिकट बंटवारे में सामाजिक समीकरण को साधने की भी कवायद की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मायावती ने मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। इसके साथ बुंदलेखंड क्षेत्र में मायावती ने टिकट बंटवारे में स्थानीय सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश की है।
5-त्रिंशुक विधानसभा में किंगमेकर- अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ रही मायावती की नजर 10 मार्च की तारीख पर भी टिकी है। अगर उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कोई भी दल अकेले बल पर बहुमत नहीं हासिल करता है तब मायावती की पार्टी किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है। बसपा का प्री पोल एलांयस नहीं होने से उसके लिए पोस्ट पोल एलांयस के सभी ऑप्शन पूरी तरह खुले हुए है। उत्तर प्रदेश का सियासी इतिहास भी बताता है कि चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने वाली मायावती तीन बार कम सीटों के बावजूद सूबे की सत्ता पर काबिज हुई।
अगर मायावती की पार्टी बसपा के 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को देखे तो बसपा सपा के मुकाबले बीस ही ठहरती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 22.23% वोट मिले थे जबकि सपा को 21.82% वोट हासिल हुए थे। वहीं अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी मायावती की पार्टी 19.43% वोट बैंक के साथ 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।