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एक्सप्लेनर: पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कौन सा चला कार्ड, कम वोटिंग से किसको नफा किसको नुकसान?

हमें फॉलो करें एक्सप्लेनर: पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कौन सा चला कार्ड, कम वोटिंग से किसको नफा किसको नुकसान?
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विकास सिंह

, शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022 (13:32 IST)
उत्तरप्रदेश विधानसभा में पहले चरण में 58 सीटों पर हुई कम वोटिंग के बाद अब सियासी विश्लेषण का सिलसिला तेज हो गया है। 2017 के मुकाबले इस बार इन 58 सीटों पर 3 फीसदी कम मतदान हुआ। चुनाव आयोग की ओर जारी से अंतिम आंकड़ों के मुताबिक इन 58 सीटों पर 60.71 फीसदी मतदान हुआ जबकि 2017 में इन सीटों पर 64.56 फीसदी मतदान हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 58 सीटों पर 2012 की तुलना में तीन फीसदी अधिक मतदान हुआ था और भाजपा ने चुनाव परिणाम में तगड़ी जीत हासिल की थी। वहीं 2012 में कम वोटिंग का फायदा सीधे समाजवादी पार्टी को हुआ था।  
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण की वोटिंग के बाद जो तस्वीर निकलकर सामने आ रही है उसमें भाजपा और सपा और आरएलेडी गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला नजर आ रहा है। वहीं कुछ सीटों पर कांग्रेस और बसपा गेमचेंजर बन सकती है।  
 
उत्तरप्रदेश की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश की पहले चरण की वोटिंग में एंटी इनकंबेंसी का फैक्टर काफी हावी नजर आया जिसका खमियाजा चुनाव परिणाम में सत्तारूढ़ दल को उठाना पड़ सकता है। इसके साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका जाटलैंड कहलाता है कि वहां वोटिंग में जिन्ना की जगह गन्ना और किसान आंदोलन का काफी असर नजर आया है। जाटलैंड में किसानों की भाजपा के प्रति नाराजगी वोटिंग में दिखाई दी। वहीं मुजफ्फरनगर और कैराना जैसी सीटों पर जिन्ना पर गन्ने का मुद्दा काफी हावी नजर आया। इसके साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रोजगार और स्थानीय मुद्दें काफी हावी नजर आए।
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चुनाव में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का बड़ा कारण भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी नजर आई। भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर नहीं आया। पांच साल तक ब्यूरोक्रेसी के हावी होने के चलते मंत्रियों और विधायकों तक के क्षेत्र से जुड़े काम नहीं होने का असर भी वोटिंग में दिखाई दिया।   
 
वहीं वोटिंग परसेंट कम होने के सवाल पर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि इसका बड़ा कारण कोरोना फैक्टर भी रहा है। कोरोना के कारण वह वोटर जो रोजगार जैसे अन्य कारणों से बाहर था वह वोटर वोट डालने नहीं आया। 
 
वहीं रामदत्त त्रिपाठी चुनाव से जुड़ा दिलचस्प किस्सा बताते हुए कहते हैं कि उत्तरप्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस नहीं लड़ती है तो उसका फायदा भाजपा को मिलता है। इस बार कांग्रेस काफी मजबूती से चुनाव लड़ती नजर आ रही है जिससे सीधा नुकसान भाजपा को होगा।
 
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पहले चरण में वोटिंग के बाद सियासत के जानकार कहते हैं कि पश्चिम उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की कैमेस्ट्री काफी प्रभावी नजर आ रही है। जाट और गुर्जर समाज का वोटर जो 2017 में एकजुट भाजपा के साथ नजर आया वह इस बार बंट गया जो चुनाव परिणाम पर काफी नजर आ रहा है। भाजपा के विरोध में मुसलमान और जाट वोटर एकजुट नजर आया। वहीं दलित वोटर भाजपा और मायावती के साथ गठबंधन में बंट गया।  
 
 
 

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