शायर : 'रहबर जोनपुरी'कहते हैं सब इसे इल्म-ओ-फ़न की ज़मींकितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं
इस के सर पर हिमाला का है बांकपन
इस के दामन में बहती हैं गंगोजमन
इसके खेतों में उगते हैं ला-ओ-गोहर
गोद में इसकी पलते हैं एहले हुनर
चिश्ती-ओ-नानक-ओ-लक्ष्मन की ज़मीं
कितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं
इस में है हीर के प्यार की दास्ताँ
कृष्ण ने तान बंसी की छेड़ी यहाँ
सोहनी इसके इतिहास में है अमर
रू-ए-मुम्ताज़ है ताज में जलवागर
इससे बढ़कर नहीं कोहकन की ज़मीं
कितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं
कितना प्यारा अजंता का शहकार है
मिलना सानी एलोरा का दुश्वार है
है यहाँ अर्ज़-ए-कश्मीर जन्नत निशाँ
इसकी राहों को चमकाती है कहकशाँ
देखकर जिसको खिलती है मन की ज़मीं
कितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं
खुशनुमाँ इसका हर शहर हर गांव है
हर तरफ़ खतियाँ हर तरफ़ छांव है
खुश्बुओं से महकती है इसकी फ़िज़ा
हर तरफ़ रक़्स करती है ठंडी हवा
निकहत-ए-लाला-ओ-यासमन की ज़मीं
कितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं
गीत भक्ति का मीरा ने गाया यहाँ
तुलसी ने राम से दिल लगाया यहाँ
इसके रतनों में हैं सूर-ओ-रसखान भी
इसके अपने हैं गीता भी क़ुरआन भी
मेहवे हैरत है मिस्र-ओ-यमन की ज़मीं
कितनी दिलकश है मेरे वतन की ज़मीं