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सोहागन बेवा : भाग-2

हमें फॉलो करें सोहागन बेवा : भाग-2
ऎ मुबारक मौत! ऎ राज़े कमाले ज़िन्दगी
ऎ जहाने ख़्वाब नोशीं! ऎ मआले ज़िन्दगी
ऎ पयामे रोशनी! सर्रे बक़ा ताजे हयात
ऎ निज़ामे देह्र! ऎ रफ़्तारे नब्ज़े कायनात

मेरी ज़ुलमत पर भी डाल अपनी अनोखी रोशनी
आ इधर आ, शाहज़ादी आलमे अरवाह की

कहके ये लपकी चिता की सिम्त वो नाज़ुक ख़िराम
और कहा ऎ दुख भरे संसार ले मेरा सलाम
बस ये सुना था कि झपटे उसकी जानिब दास भी
देखते ही आपको, कमसिन तो थी घबरा गई

हर तरफ़ पहले तो देखा दिल में क्या-क्या ठान के
और फिर गरदन झुका ली दास को पहचान के
हो गई फ़रते हया से रूहे ग़मगीं बेक़रार
उंगलियाँ अपनी मरोड़ीं देर तक दीवानावार

सर झुका, माथे पे ज़ुल्फ़े नाज़ लहराने लगी
हुस्न को आग़ोशे ग़म में नींद सी आने लगी
चुप हुई तो और दर्दे हिज्र दूता हो गया
दी सदा दिल ने तेरा पहलू तो सूना हो गया

ये सदा सुनते ही दम उलझा, फरेरी आ गई
इक घटा दिल से उठी अरज़ो समाँ पे छा गई
रो के फिर कहने लगी बाबा दुआ दीजे मुझे
ज़िन्दगी के पाप से जलदी छुड़ा दीजे मुझे

आपकी दासी पे अब इस जग में रहना बार है
आग इस छाती में रोशन है चिता तय्यार है

झोंक भी दीजे मुझे इस आग के अम्बार में
मैं अकेली हूँ कोई मेरा नहीं संसार में
दास ने फिर तो क़रीब आकर बनरमी यूँ कहा
ऎ मेरी नादान बच्ची सोच तू कहती ऐ क्य


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