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एक बिरले शायर थे मिर्ज़ा ग़ालिब...
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गजल : छलकते जाम
गोया वो मदहोश होकर मेरी कसमों से यूं मुकर से जाते हैं जब मयकदे में उनके आगे आशिकी में जाम छलक जात...
जन्नत पुकारती है...
हर शख़्स मेरा साथ निभा नहीं सकता
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था, सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला - निदा फ़ाज़ली
जान लेने का हक़ नहीं वरना
फ़ैसले सच के हक़ में होते हैं मैं अभी तक इसी गुमान में था---- अशफ़ाक़ अंजुम
दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के
ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ...
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है , तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा - बशीर बद्र
अशआर : (मजरूह सुलतानपुरी)
जला के मिशअले-जाँ हम जुनूँ सिफ़ात चले जो घर को आग लगाए हमारे सात चले
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
होगा कोई ऐसा भी जो ग़ालिब को न जाने शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है
ग़ज़ल में तसव्वुफ़ (भक्ति भाव)
जब यार देखा नयन भर दिल की गई चिंता उतर ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
हर एक रास्ता मंज़िल है चल सको तो चलो बने बनाए हैं सांचे जो ढल सको तो चलो
मैं अक्सर चाँद पर जाता हूँ
जोया के अशआर
ज़िन्दगी लगती है इक प्यारी ग़ज़ल सी लेकिन, इस का हर शे'र बड़ा दर्द भरा होता है।
दिल से पहुँची तो हैं
सब ग़लत कहते थे लुत्फ़-ए-यार को वजहे-सुकूँ दर्द-ए-दिल उसने तो हसरत और दूना कर दिया-------हसरत मोहानी
आप बन्दा नवाज़ क्या जानें
मेरे दिल को किया बेख़ुद तेरी अंखयाँ ने आख़िर कूँ के जूँ बेहोश करती है शराब आहिस्ता आहिस्ता ----------
फ़ाज़िल अंसारी के अशआर
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
ज़िन्दगी है या कोई तूफ़ान है, हम तो इस जीने के हाथों मर चले।------
ख़ुदा है वो भी
लोग ख़ुश हैं उसे दे-दे- के इबादत का फ़रेब वो मगर ख़ूब समझता है ख़ुदा है वो भी -------ग़नी एजाज़
मुनव्वर राना के मुनफ़रिद अशआर
ख़ुदा ऎसे मुखड़े बनाता है कम
दोस्तों ने भी तमन्नाओं को पामाल किया दुश्मनों पर ही न इलज़ाम लगाया जाए
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