सुख के सपने दिये हैं दौलत ने
नींद इसने मगर चुराली है- डॉ. स्वामी श्यामा नन्द सरस्वती रोशन
अभी तो सिर्फ्र गुलिस्तां ने आँख खोली है
अभी तो वक्त लगेगा बहार आने में- ना मालूम
उनसे पूछो के कभी चेहरे पढ़े हैं उसने
जो किताबों की किया करता है बातें अक्सर- नामालूम
इक बार मुज़फ्फ़र को भी तौफ़ीक़ अता हो
मज़दूर भी जाते हैं अरब तक मेरे मौला - मुज़फ्फ़र हनफ़ी
हुस्न उसका मुझे इक समन्दर लगा
और मैं डूबने के लिए चल पड़ा - अहमदसगीर सिद्दीक़ी, पाकिस्तान
हमारे शहर में जब हादिसा हुआ ही नहीं
तो अपने साये से फिर लोग डर गये कैसे - जफ़र इक़बाल
गुज़ारो वहीद इसको हंस खेल के तुम
बड़ी मुख़्तसर ज़िन्दगानी है लोगों - शकील वहीद
मिला है शाख़े समरदार का मिज़ाज हमें
के जिसमें मिलते हैं हम, सर झुका के मिलते हैं- अनवर शमीम
आज साहिल पे इन्हें जाके मैं टपका आया
ये मेरे अश्क थे कुछ बारेगिराँ से ये दोस्त - सालिम सलीम
रेल की सीटी में कैसी हिज्र की तम्हीद थी
उसको रुख़सत कर के घर लौटे तो अंदाजा हुआ - परवीन शाकिर