पेशकश : अज़ीज़ अंसारी
है मेरा ज़ब्ते-जुनूँ, जोशे-जुनूँ से बढ़कर
नंग है मेरे लिए चाक गरेबाँ होना
* क़िस्से लिक्खे हुए हैं जो फ़रहाद-ओ-क़ैस के
खोए हुए वरक़ वो मेरी दास्ताँ के हैं
* आशिक़ भी हूँ, माशूक़ भी ये तुरफ़ा मेरा है
दीवाना हूँ मैं जिसका वो दीवाना है मेरा
* हज़ारों जान देते हैं बुतों की बेवफ़ाई पर
अगर इनमें से कोई बावफ़ा होता तो क्या होता
* वो गुलशन की फज़ा और चाँदनी का वो निखर जाना
वो बढ़कर गेसू-ए-लैला-ए-शब का ता कमर जाना
* जवानी में इसी को इबतिदा-ए-इश्क़ कहते हैं
दवा की फ़िक्र करना तालिबे-दर्दे-जिगर जाना
* आप माशूक़ हैं, क़ातिल नहीं, जल्लाद नहीं
दिल दुखाने के लिए हुस्ने-ख़ुदादाद नहीं
* इत्र अफ़शाँ मेरे वीराने में आई है नसीम
क्या किसी महबूब के गेसू परेशाँ हो गए