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दोस्त और दोस्ती से मुताल्लिक़ मुनफ़रिद अशआर

हमें फॉलो करें दोस्त और दोस्ती से मुताल्लिक़ मुनफ़रिद अशआर
, शनिवार, 9 अगस्त 2008 (15:04 IST)
* दोस्तों इस क़दर सदमे हुए हैं जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा

* न छेड़ो ज़िक्र मेरे दोस्तों का
दुहाई दोस्ती देने लगेगी---------अज़ीज़ अंसारी

* हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर इक फ़ायदा है पीठ पर ख़ंजर नहीं लगता -----मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

* न पूछ कैसे गुज़ारी है ज़िन्दगी ऎ दोस्त
बड़ी तवील कहानी है फिर कभी ऎ -----------नामालूम

* मुझको यारों न करो राहनुमाओं के सुपुर्द
मुझको तुम राहगुज़ारों के हवाले कर दो ------अदम

* वफ़ा, इख़लास, रसमोराह, हमदर्दी, रवादारी
ये जितनी भी हैं ऎ दोस्त अफ़सानों की बातें हैं -----अक्षात

* ये वफ़ा की सख़्त राहें, ये तुम्हारे पा-ए-नाज़ुक
न लो इनतिक़ाम मुझसे, मेरे साथ-साथ चलके--------ख़ुमार

* दोस्ती से मुझे हो गई दुश्मनी
ऎसी की दोस्ती आपने आपने ---------अज़ीज़ अंसारी

* इससे बढ़कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं
सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं--------जिगर

* हाथ रखकर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
तूने ऎ दोस्त ये गिरता हुआ घर थाम लिया------अमीर मीनाई

* सब्र-ए-अय्यूब किया, गिरया-ए-याक़ूब किया
हमने क्या-क्या न तेरे वास्ते मेहबूब किया-------मज़मूँ

* हम भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा करके
तुमने अच्छा किया वफ़ा न की----------मोमिन

* जग में आकर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा -----मीर दर्द

* जहाँ वो हैं वहीं मेरा तसव्वुर
जहाँ मैं हूँ ख्याल-ए-यार भी है

* नहीं जानते कुछ कि जाना कहाँ है
चले जा रहे हैं मगर जाने वाले

* जान ही दे दी जिगर ने आज पा-ए-यार पर
उम्र भर की बेक़रारी को क़रार आ ही गया

* सब पे तू मेहरबान है प्यारे
कुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे

* तू जहाँ नाज़ से क़दम रख दे
वो ज़मीं आसमान है प्यारे

* होती ही नहीं कम शब-ए-फ़ुरक़त की सियाही
रुखसत हुई क्या शाम के हमराह सहर भी

* दर्द-ओ-ग़म दिल की तबीयत बन चुके
अब यहाँ आराम ही आराम है

* तूल-ए-ग़म-ए-हयात से घबरा न ऎ जिगर
ऎसी भी कोई शाम है जिस की सहर न हो


* सभी अन्दाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं
हम मगर सादगी के मारे हैं

* उनका जो फ़र्ज़ है वो एहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुंचे

* सय्याद ने लूटा था अनादिल का नशेमन
सय्याद का लुटता हुआ घर देख रहा हूँ

* उस ने शानों पे ज़ुल्फ़ बरहम की
खैर यारब निज़ाम-ए-आलम की

* ये इश्क़ नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

* वफ़ा का नाम कोई भूल कर नहीं लेता
तेरे सुलूक ने चौंका दिया ज़माने को

* दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

* जान कर मिनजुम्ला-ए-खासान-ए-मयखाना मुझे
मुद्दतों रोया करेंगे जाम-ओ-पैमाना मुझे

* यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

* दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि यार का पैग़ाम आ गया

* अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत, न बख़्शे शिकायत क्या
सर-ए-तलीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए -------अक्षात

* वीराँ है मयकदा, ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं
तुम, क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के-------फ़ैज़

* दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के-----फ़ैज़

* कौन क़ातिल बचा है शहर में फ़ैज़
जिससे यारों ने रस्म-ओ-राह न की------फ़ैज़

* कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए --------फ़ैज़

* आप की जिस में हो मरज़ी वो मुसीबत बेहतर
आपकी जिसमें ख़ुशी हो वो मलाल अच्छा है --------दाग़

* वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
दोस्त दुनिया में नहीं दाग़ से बेहतर अपना--------दाग़

* जो शख़्स मुद्दतों मेरे शैदाइयों में था
आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयों में था------शकीला बानो

* तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
तो ऎसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं ------फ़िराक़

* रोज़ आया न करो उसने कहा था राशिद
आज सड़कों पे भटक लूँ वहाँ कल जाऊँगा----मिमताज़ राशिद

* निगाह-ए-यार का क्या है हुई हुई न हुई
ये दिल का दर्द है प्यारे, गया गया न गया-----अहमद फ़राज़

* दिन में जो हँस-हँस के मिलता है अज़ीज़
रात में उठ-उठ के वो रोता है दोस्त -------अज़ीज़ अंसारी

* हमारी चाहतें सच हैं मगर हालात का दरिया
मुझे इस पार रखता है तुम्हें उस पार रखताक है----फ़रहान हनीफ़

* बे यार रोज़-ए-ईद शब-ए-ग़म से कम नहीं
जाम-ए-शराब दीदा-ए-पुरनम से कम नहीं -------ज़ौक़

* न हुआ पर न हुआ मीर का अंदाज़ नसीब
ज़ौक़ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा -------ज़ौक़

* हम मोहब्बत में भी तोहीद के क़ाइल हैं फ़राज़
एक ही शख़्स को महबूब बनाए रखना -----------अहमद फ़राज़

* दोस्ती उसकी निभ नहीं सकती
दिल न माने तो आज़मा देखो -----------मख़मूर सईदी

* बात कम कीजे, ज़हानत को छुपाए रहिए
अजनबी शहर है ये दोस्त बनाए रहिए ------निदा फ़ाज़ली

* दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए -----निदा फ़ाज़ली

* दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त बन जाएँ तो शर्मिन्दा न हों----बशीर बद्र

* मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़ेहर भी इसमें अगर होगा दवा बन जाएगा--------बशीर बद्र

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