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शे'री भोपाली के मुनफरिद अशआर

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1. अब रोके से कब रुकती है फ़रयाद किसी की
नश्तर की तरह चुभने लगी याद किसी की

थम-थम के बरसती हैं घटाओं पे घटाएँ
रेह-रेह के रुलाती है मुझे याद किसी की

मैं मिट गया लेकिन न मिटा इश्क़ किसी का
दिल मिट गया लेकिन न मिटी याद किसी की

2. अभी नहीं रविशे-ग़म पे इख़्तियार मुझे
ज़रा संभाल के ले चल ख़्याले-यार मुझे

मेरे गुनाह की पशेमानियाँ ही क्या कम थीं
तेरे करम ने किया और शर्मसार मुझे

ख़्याले-यार को मैं भूल जाऊँ नामुमकिन
भुला सके तो भुला दे ख़्याले-यार मुझे

3. दिल को दीवाना किया, आँखों को हैराँ कर दिया
हुस्न बनकर उसने जब ख़ुद को नुमायाँ कर दिया

जज़बा-ए-बेताब-ए-वेहशत को नुमायाँ कर दिया
हमने दामन तक गरेबाँ को गरेबाँ कर दिया

अश्के-पेहम, नाला-ए-ग़म, इज़तरार-ओ-इज़तेराब
जो मोयस्सर आ गया वो उनपे क़ुरबाँ कर दिया

इज़्तेराब-ए-शौक़ को लेजा के अब तड़पूं कहाँ
वुसअत-ए-कोनेन को भी जिसने ज़िन्दाँ कर दिया

देखना शे'री जमाले-यार की अफ़ज़ाइशें
ख़ुद नुमायाँ होके मुझको भी नुमायाँ कर दिया

4. नज़र से नज़र ने मुलाक़ात कर ली
रहे दोनों ख़ामोश और बात कर ली

अजब हाल है अपना दीवानगी में
कहीं दिन गुज़रा, कहीं रात कर ली

सरे-बज़्म उसने हमारे अलावा
इधर बात कर ली, उधर बात कर

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