भोपाल के अच्छे ग़ज़लगो शो'रा की फ़ेहरिस्त तरतीब दी जाए तो अनीस अंसारी का नाम फ़ेहरिस्त के पहले हिस्से में नुमायाँ तौर से दिखाई देगा। आप ग़ज़लें कहते हैं, जो सिर्फ़ अच्छी नहीं बल्की बहुत अच्छी होती हैं। अशआर पढ़ने वालों के दिलों पर गहरा असर छोड़ते हैं। अपने अशआर में गहरी और गम्भीर बातें भी बड़ी सादगी से और बड़े दिलकश अंदाज़ में कह जाते हैं। उनकी चन्द ग़ज़लें हम यहाँ अखीर में बतौर नमूना पेश करेंगे।
अनीस अच्छे शायर होने साथ ही अच्छे अदीब भी हैं। उनके अफ़साने आए दिन शाए होते रहते हैं और म.प्र. के अच्छे अफ़साना निगारों में आपका शुमार होता है। आप मज़ामीन भी खूब लिखते हैं कई मशहूर हस्तियों पर आपने मज़मून लिखे हैं। इन तमाम खूबियों के साथ ही रेडियो और दूरदर्शन के मक़बूल क़लमकार भी हैं। जब भी कोई खास मौक़ा हो और कोई अच्छा क़लमकार नहीं मिल रहा हो तो अनीस को पूरे ऎतमाद के साथ याद किया जाता है।
अनीस भी कभी किसी काम के लिए मना नहीं करते और पूरी लगन, ईमानदारी और जाँफ़िशानी से उस काम को बहुस्न-ओ-खूबी
अन्जाम देते हैं। चार-बैत पर भी आपने बहुत काम किया है। चार-बैत पर आपकी एक किताब 'मेहफ़िल-ए-चार-बेत' को म.प्र.आदिवासी लोक कला परिषद भोपाल ने 2003 में शाए किया है। इस किताब को म.प्र.उर्दू अकादमी ने विशेष इनाम से भी नवाज़ा है।
अनीस अंसारी की ग़ज़लें
1. अपने हालात पर नज़र रखिए
खुद को खुद से न बेखबर रखिए
हो जो मुमकिन तो अपने दामन में
उजली उजली नई सहर रखिए
तबियत से ज़रा भी बच्चों की
खुद को हरगिज़ न बेखबर रखिए
घर में झगड़े तो होते रहते हैं
बात का सिलसिला मगर रखिए
जब भी छेड़ें तो निकले अल्लाहू
दिल के तारों को जोड़ कर रखिए
अनीस होगा न हक़ अदा फिर भी
लाख क़दमों में माँ के सर रखिए
2. हसरत-ओ-यास की कहानी है
क्या मोहब्बत की ज़िन्देगानी है
तुम क़यामत जिसे समझते हो
वो मेरे ग़म की तरजुमानी है
मौत से है वजूद आलम का
मौत ही ज़ीस्त की निशानी है
दिल का नासूर इसलिए है अज़ीज़
नाविक-ए-यार की निशानी है
इश्क़ की मौत को न कहिए मौत
इश्क़ की मौत जाविदानी है
मेरे होने न होने का ऎ अनीस
किसलिए उनको सरगिरानी है