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आह! साग़र ख़य्यामी

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किसी ने ठीक ही कहा है -

या तो दीवाना हँसे या तू जिसे तौफ़ीक़ दे
वरना इस दुनिया में रेह कर मुस्कुरा सकता है कौन

साग़र ख़्य्यामी ने भी हँसने और मुस्कुराने की एहमियत को समझा और अपनी संजीदा शायरी को छोड़कर जिसे वो जोहर नाम से लिखा करते थे, तंज़िया और मज़ाहिया शायरी शुरू कर दी। देखते ही देखते को पूरे मुल्क में अपने इस फ़न की बदौलत पहचाने जाने लगे। उनके कलाम में भरपूर मिज़ाह और तंज़ हुआ करता था। साथ ही लखनवी ज़ुबान का चटख़ारा और इनका अंदाज़े बयाँ, ये सब मिलकर सुनने वालों को क़हक़हे लगाने पर मजबूर कर दिया करते थे।

तंज़-ओ-मिज़ाह के शायर दिलावर फ़िगार के बाहर चले जाने से उनकी कमी को पूरा किया था साग़र ख़य्यामी के बड़े भाई नाज़िर ख़य्यामी ने। लेकिन नाज़िर ख़य्यामी ने अपने कलाम को शराब-ओ-शबाब, पैमाने मैख़ाने के दायरे में ही क़ैद कर रखा था।

उनके इंतेक़ाल के बाद जब नाज़िर ख़य्यामी ने इस तर्ज़ को अपनाया तो मौजूदा दौर की हर अहम बात को तंज़-ओ-मिज़ाह का लिबास पहनाकर अवाम के सामने पेश किया। अवाम ने भी उन्हें सर-आँखों पर बिठाया। अब तो ये हाल था के मुल्क में कम और बेरूनी मुमालिक के मुशायरों में आप ज़्यादा मसरूफ़ रहते थे।

उनका नाम सय्यद रशीदुलहसन था और वो अपनी ज़िन्दगी की सत्तर बहारें देख चुके थे। उनके कलाम के तीन मजमूए मनज़रे-आम पर आ चुके हैं। 1997 में उन्हें ग़ालिब एज़ाज़ से नवाज़ा गया था। उनके इंतेक़ाल से तंज़-ओ-मिज़ाह की शायरी में जो कमी पैदा हुई है उसका मुस्तक़बिल क़रीब में भरा जाना मुश्किल नज़र आता है। आज हम यहाँ उनका कलाम बतौर नमूना पेश कर रहे हैं।

मज़ाहिया शायर साग़र ख़य्यामी का कलाम

भाबी, भतीजे, फ़ेन हज़ारों अज़ीज़ हैं
जबतक क़दम हक़ीरके उनडर क्रीज़ हैं
(एक क्रिकेट खिलाड़ी जब तक खेलता है तब तक उसको सब चाहते हैं)

बोला दुकानदार के क्या चाहिए तुम्हें
जो भी कहोगे मेरी दुकाँ पर वो पाओगे
मैंने कहा के कुत्ते के खाने का केक है
बोला यहीं पे खाओगे या लेके जाओगे

दिल लुटे, जाँ को मिटे ख़ासा ज़माना हो गया
ख़त्म दुनिया से मोहब्बत का फ़साना हो गया
कान में झुक कर कहा टेगोर के इक़बाल ने
ईलू-ईलू हिन्द का क़ौमी तराना हो गया

हीटर से शोला हुस्न का भड़काया जाएगा
अब इश्क़ भी मशीन से फ़रमाया जाएगा
शोहर भी इक मशीन है समझाया जाएगा
आशिक़ को भी मशीन से तड़पाया जाएगा
कुछ दिन के बाद देखना साइंसी देन से
जन्नत को भेजे जाएँगे मुरदे प्लेन से

ख़त आशिक़ी के लिखती नहीं दिल के ख़ून से
मिलने का वादा करती हैं अब टेलीफ़ून से

बोला दुकानदार के सरकार देखिए
मुग़लों की आन-बान के आसार देखिए
अकबर की तेग़ और सिपर है सलीम की
हर चीज़ दस्तयाब है एहदे-क़दीम की
ग़ालिब का जाम, मीर की टोपी का बांकपन
मोमिन का लोटा, हज़रते-सोदा का पैरहन
एड़ी गुलाब की है तो, पंजा कंवल का है
जूता मेरी दुकान में हज़रत-महल का है

पेशकश : अज़ीज़ अंसारी

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