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तबसिरा : बच्चों का नाविल 'शिमाइला'

हमें फॉलो करें तबसिरा : बच्चों का नाविल 'शिमाइला'
तबसिरा निगार- अज़ीज़ अंसारी

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सुलतान सुबहानी मुल्क के मायानाज़ नस्र निगार हैं। वैसे आप अच्छे शायर भी हैं। लेकिन जब इनकी किताबों की फ़ेहरिस्त पर नज़र डाली जाती है तो, शायरी की किताबें कम और नस्र निगारी की किताबें ज़्यादा दिखाई देती हैं। नस्र में भी बच्चों के नाविल आपका पसन्दीदा सबजेक्ट है। क़रीब दो साल पहले आपकी एक किताब शाए हुई थी 'माफ़ौक़ुलफ़ितरत', यह भी बच्चों का ही नाविल थी। ताज़ा किताब में सारा माहौल ऐसा पैदा किया गया है कि बच्चों की दिलचस्पी शुरू से लेकर आखिर तक क़ायम रहती है।

लिहाज़ा इस किताब को भी हम बच्चों का नाविल कह सकते हैं। शिमाइला में अहम किरदार एक बच्चे "सिकन्दर" का है यानी शिमाइला का हीरो भी एक बच्चा है। सिकन्दर को पुरानी चीज़ें जमा करने का शौक़ है। एक कबाड़ी की दुकान में एक दिन उसे एक बहुत पुरानी तस्वीर दिखाई देती है। इसका फ़्रेम भी बहुत पुराना और जाज़िब नज़र होता है। उसे वह तस्वीर इतनी पुरकशिश लगती है कि वह उसे ख़रीद कर घर ले आता है। उस तस्वीर को वह अपनी ख्व़ाबगाह में उस दीवार पर टाँग देता है जो उसके सरहाने के सामने होती है।

इस तस्वीर में एक निहायत ख़ूबसूरत परों वाली परी का सरापा है। यहाँ से सिलसिला शुरू होता है परिस्तान की बातों का। परिस्तान में भी सब अच्छे बाशिन्दे नहीं होते। यहाँ भी बहुत ज़ालिम और जाबिर बाशिन्दे होते हैं। ऐसा ही एक बाशिन्दा है "जालूस" जो बड़ा शैतान है। इसके क़ब्ज़े में बड़ी-बड़ी जादुई ताक़तें हैं। इनके ज़रिए वह परिस्तान के बाशिन्दों को परेशान करता रहता है। वह पूरे परिस्तान पर अपनी हुकूमत क़ायम करना चाहता है। शिमाइला भी उसके ज़ुल्म का शिकार है।
  सुलतान सुबहानी मुल्क के मायानाज़ नस्र निगार हैं। वैसे आप अच्छे शायर भी हैं। लेकिन जब इनकी किताबों की फ़ेहरिस्त पर नज़र डाली जाती है तो, शायरी की किताबें कम और नस्र निगारी की किताबें ज़्यादा दिखाई देती हैं।      


शिमाइला यानी वही तस्वीर वाली परी सिकन्दर को परिस्तान के सारे हालात बताती है। वह वहाँ के राज़ और ख़ुफ़िया रास्ते भी बताती है। सिकन्दर अपनी हिम्मत और बुज़ुर्गों से मिली ताक़त के बल पर सालूस का ख़ात्मा कर देने की ठान लेता है। इस काम में शिमाइला भी उसके साथ रहती है और क़दम-क़दम पर उसकी मदद करती है।

इस कहानी के ताने-बाने इस तरह सजाए गए हैं कि बच्चों की दिलचस्पी बढ़ती जाती है। उनके ज़हन में यह सवाल उठता रहता है कि अब क्या होगा, अब क्या होगा।

कहानी में परिस्तान है तो परियाँ भी हैं, जिन भी हैं और उनके जादुई करिश्मे भी हैं। कहानी में एक करामाती सफ़ेद फूल है, जादुई अँगूठी है, बड़े-बड़े पहाड़ हैं, गहरी वादियाँ हैं, ख़तरनाक परिन्दे हैं और रंग-बिरंगी रोशनी उगलते हुए दरख्त हैं। फ़व्वारे हैं, नदियाँ हैं, नहरें हैं, चश्मे हैं गोया वह सब कुछ है जो ब्च्चों को पसन्द है। सुलतान सुबहानी का अंदाज़े बयाँ भी इतना दिलचस्प है कि किताब को हाथ से छोड़ देने को मन नहीं करता।

देखिए किताब का एक पेरेगिराफ :
'हर तरफ़ सीमाबी फिज़ा थी। पूरे परिस्तान पर बेशुमार क़ौसोक़ज़ह सायबान की तरह तनी हुई थी। हर क़ौसोक़ज़ह के रंग मुख़तलिफ़ थे और रंगीन सीमाब की तरह चमक रहे थे। जहाँ तक नज़र जाती अजीब रंग और फूलों से लदे दरख्त झूम रहे थे। उनके दरमियान चाँदी की तरह चमकते मख़रूती महल जो गुम्बदों, मीनारों और मेहराबों के ज़रिए कारीगरी और सन्नाई का बेमिसाल नमूना पेश कर रहे थे।

इन महलों से रंगीन रोशनियाँ फूट रही थीं। क्योंकि इनमें नक़्शनिगारी के लिए हीरे, याक़ूत, लाल, ज़मर्रुद, पुख़राज वग़ैरा जड़े हुए थे। नीचे ज़मीन पर कई रंगों की ऐसी घास थी जैसे मख़मल के क़ालीन बिछे हों। थोड़ी-थोड़ी दूर पर फ़व्वारे थे और उनके दरमियान सफ़ेद-सफ़ेद रास्तों का जाल इस तरह फैला हुआ था कि इक ख़ूबसूरत सी तस्वीर बन गई थी।'

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पूरी किताब में ऐसा ही अंदाज़े बयाँ है। परियों, जिनों और जादुई बातों का ज़िक्र बार-बार होता है। इनका सहारा लेकर हिम्मत, बहादुरी, प्यार-मोहब्बत और ग़रीबों-मज़लूमों से हमदर्दी, नेकी, इबादत, हुब्बुल वतनी का सबक़ पढ़ाया गया है।

सुबहानी साहब अपने मक़सद में कामयाब भी हैं। लेकिन ऐसी बातों से क्या हम बच्चों में अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। इस साइंस के दौर में बच्चों की दिलचस्पी के क्या और कोई मज़ामीन नहीं हैं। उम्मीद है अपने किसी अगले नाविल में सुबहानी साहब कम्प्यूटर, इंटरनेट और साइंस की नई-नई ईजादों का सहारा लेकर बच्चों के लिए इसी तरह का कोई दिलचस्प नाविल तहरीर करेंगे।

किसी ज़माने में इब्ने सफ़ी अपने जासूसी नाविलों के लिए बहुत मक़बूल थे। सुलतान सुबहानी साहब भी वैसी ही मंज़र कशी कर रहे हैं। जब आप परिस्तान का ज़िक्र करते हैं तो पढ़ने वाले को परिस्तान की सैर करा देते हैं और उसे हर बात, हर चीज़ हक़ीक़त मालूम होती है। 128 सफ़हों की इस किताब का कवर रंगीन और जिल्द मज़बूत है। किताब की क़ीमत सिर्फ़ 70 रु. है। उर्दू स्कूलों और लायब्रेरियों में इस किताब को होना चाहिए। यह किताब "क़ौमी कौंसिल बराए फ़रोग़े उर्दू ज़ुबान" के माली तआवुन से शाए की गई है।

पुस्तक का नाम : 'शिमाइला'
मुसन्निफ़ : सुलतान सुबहानी
प्रकाशक : हमज़ुबान पब्लिकेशन, एम.एच.बी. कॉलोनी (हज़ार खोली), मालेगाँव (महाराष्ट्र)
मूल्य : 70 रु.

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