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मुज़फ़्फ़र हनफ़ी से गुफ़्तगू

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मशहूर शायर मुज़फ़्फ़र हनफ़ी से अज़ीज़ अंसारी की गुफ़्तग

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डॉ. मुज़फ़्फ़र हनफ़ी, एहले नज़र और बाशऊर उर्दूदाँ हज़रात की पहली पसन्द के शायर हैं। आपकी पैदाइश खंडवा (मध्यप्रदेश) में यकुम अप्रैल उन्नीस सौ चौंतीस को हुई। आपका बचपन खंडवा में ही गुज़रा और हाईस्कूल तक तालीम आपने यहीं से हासिल की।

1960 से अपनी सर्विस का आग़ाज़ आपने भोपाल से किया और सर्विस करते हुए बी.ए., एम.ए.एल.एल.बी. और पीएच.डी. की डिगरियाँ हासिल कीं। 1974 में एनसीईआरटी, नई दिल्ली, में मुलाज़िम हुए। 1976 में जामिया ‍मिल्लिया इस्लामिया के शोबा ए उर्दू में रीडर के ओहदे पर काम शुरू किया। 1989 में कलकत्ता युनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर ऑफ़ इक़बाल चेयर बने। 1959 में खंडवा से आपने एक अदबी रिसाला 'नए चिराग़' भी निकाला जिसने पूरे मुल्क के अदबी रिसालों में अपनी पहचान बनाई।

रिसाले में जहाँ नए लिखने वालों को जगह दी गई वहीं मुल्क के मशहूर व नामवर शायर और अदीब भी उसमें शाए होते रहे। पीएच.डी. के लिए आपकी तहक़ीक़ का मोज़ूँ था 'शाद आरफ़ी' की शख्सियत और फ़न'। शाद आरफ़ी के कलाम को यकजा करने और उनकी शख्सियत के मुख़्तलिफ़ पहलुओं पर आपने इतनी मेहनत की कि शाद आरफ़ी को अदब में एक नई पहचान और ज़िन्दगी मिली।
  डॉ. मुज़फ़्फ़र हनफ़ी, एहले नज़र और बाशऊर उर्दूदाँ हज़रात की पहली पसन्द के शायर हैं। आपकी पैदाइश खंडवा (मध्यप्रदेश) में यकुम अप्रैल उन्नीस सौ चौंतीस को हुई। आपका बचपन खंडवा में ही गुज़रा और हाईस्कूल तक तालीम आपने यहीं से हासिल की।      


आपकी अदबी खिदमात का सिलसिला 1953 से शुरू हुआ, जब बच्चों के लिए लिखी गई पहली कहानी बच्चों का माहनामा 'खिलौना' में शाए हुई। अपने इब्तेदाई दौर में आपने बच्चों के लिए खूब काम किया। अभी तक आपकी 60 किताबें शाए हो चुकी हैं। इनमें 15 ग़ज़लों के मजमूए हैं। बाक़ी किताबें अफ़साना, तनक़ीद, तहक़ीक़, तरजुमे और बच्चों का अदब, से मुताल्लिक़ है।

ऐसा बहुत कम होता है कि किसी की ज़िन्दगी में उसके काम और खिदमात को कोई अपनी पीएच.डी. का मोज़ूँ बनाए। लेकिन डॉ. मेहबूब राही ने अपनी तहक़ीक़ के लिए 'डॉ. मुज़फ़्फ़र हनफ़ी- हयात, शख्सियत और फ़न' को अपना मोज़ूँ बनाया और 1984 में पीएच.डी. हासिल की।

आपके कलाम में नएपन के साथ आपका अन्दाज़ ए बयाँ ऐसा होता है कि पढ़ने वाले को श'र में कही गई बात अपनी और अपने दिल की बात महसूस होती है। शायरी की ज़ुबान भी इतनी सरल और आसान होती है कि श'र को समझने में कोई दिक़्क़त महसूस नहीं होती। इन्ही तमाम खूबियों ने उन्हें हिन्द ओ पाक का मक़बूल शायर बना दिया है।

हाल ही में उन्होंने पाकिस्तान का दौरा किया है। वहाँ इस तरह आपका इस्तक़बाल हुआ जैसे भारत का सबसे बड़ा शायर उनके बीच हाज़िर हो गया हो। आपके एज़ाज़ में कई मुशायरे और नशिशतें मुनअक़िद हुईं। रेडियो और टीवी ने आपसे मुलाक़ातें नश्र कीं। वहाँ के अहम अख़बारात ने आपकी तस्वीरें, आपके हालात ए ज़िन्दगी और फ़ीचर शाए किए।

जब आप बरतानिया गए तो वहाँ भी आपको हाथोंहाथ लिया गया। बीबीसी ने आपके प्रोग्राम क़िस्तों में नश्र किए। शे'र ओ अदब की महफ़िलें आपके एज़ाज़ में मुनअक़िद की गईं। बड़े-बड़े मुशायरों की सदारत आपने संभाली। वहाँ के अख़बारात ने भी आपके कलाम के साथ आप पर फ़ीचर शाए किए।

डॉ. हनफ़ी पाकिस्तान और बरतानिया का दौरा कर चुके हैं। दोनों मुमालिक के मुख़तलिफ़ शहरों में आपके एज़ाज़ में कई अदबी महफ़िलें और मुशायरे मुनअक़िद हुए। दोनों ही मुमालिक के रेडियो, टीवी और अख़बारात ने आपकी ज़िन्दगी और अदबी खिदमात पर फ़ीचर और इंटरव्यू शाए किए।

आपकी 25 किताबों को मुल्क की मुख़तलिफ़ उर्दू अकादमियों से इनाम मिल चुके हैं। डॉ. हनफ़ी की खिदमत के ऐतराफ़ में उन्हें कई एज़ाज़ और इनाम मिले हैं। इनमें क़ाबिल ए ज़िक्र हैं-
1. मग़रबी बंगाल उर्दू अकादमी का कुल हिन्द अवार्ड
2. ग़ालिब इंस्टीट्यूट नई दिल्ली का ग़ालिब अवार्ड
3. लखनऊ से मीरा अवार्ड
4. उर्दू अकादमी दिल्ली का अवार्ड
5. मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी का सिराज मीर खाँ सहर अवार्ड
6. बीबीसी ने आप पर स्पेशल प्रोग्राम नश्र किए
7. सदा ए लंदन ने आपको तलाई तख़ती पेश की

सवाल- मुज़फ़्फ़र साहब आपने बच्चों के लिए कहानियाँ लिखीं, अफ़साने लिखे, तरजुमे किए, फिर ग़ज़ल की तरफ़ ऐसे राग़िब हुए कि इन तमाम सिंफ़ों की तरफ़ ध्यान नहीं दिया। ऐसा क्यों हुआ, इसकी कोई खास वजह?
जवाब- देखिए, इज़हार ए ख़्याल की कोई भी सिंफ़ बुरी नहीं है। लेकिन ग़ज़ल इतनी प्यारी सिंफ़ है कि आप इशारों में सब कुछ कह सकते हैं। पूरा अफ़साना दो मिसरों यानी एक श'र में बयान हो जाता है। शाद आरफ़ी साहब का एक श'र है,

ताईद ए ग़ज़ल के बारे में दो-चार इशारे क्या कम हैं
नौ लम्बी-लम्बी नज़्मोँ से नौ शे'र हमारे क्या कम हैं

मैंने इसी बात को इस तरह कहा है,

बुरी नहीं है मुज़फ़्फ़र कोई भी सिंफ़ ए सुखन
क़लम ग़ज़ल के असर में रहे तो अच्छा है

सवाल- आजकल जो मुशायरे हो रहे हैं, उनके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब- मौजूदा दौर के मुशायरों में मक़बूलियत के साथ दौलत भी है। इसलिए इनमें काफ़ी बुराइयाँ भी पैदा हो गई हैं। कई अच्छे शायर इनमें उलझकर बरबाद हो गए हैं। भारत में इसकी होलनाक मिसाल बशीर बद्र हैं। आज के मुशायरों में बेशतर शायरात अपने बनाव-सिंगार और अन्दाज़ से और शायर अपने तरन्नुम या पैंतरेबाज़ी से मुशायरा लूट लेते हैं। अदबी इक़दार और शे'री मेयार के शायरों पर अवाम की तवज्जो नहीं होती। बहुत कम शायर ऐसे हैं जो मुशायरों में भी अपना मक़ाम बरक़रार रखे हुए हैं।

सवाल- मुशायरों की एहमियत को किस तरह बरक़रार रखा जा सकता है।
जवाब- ऐसे अदबी शो'रा को मुशायरे में ज़्यादा तादाद में मदऊ किया जाना चाहिए जिनका अन्दाज़ ए बयाँ और पेशकश का सलीक़ा बेहतर हो। इस तरह अवाम की दिलबस्तगी के साथ उनके ज़ेहनी मेयार में भी बालीदगी आएगी।

सवाल- भारत में उर्दू तालीम के बारे में कुछ बताइए?
जवाब- उर्दू ज़ुबान के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि इसका तअल्लुक़ रोटी-रोज़ी से बहुत कम रह गया है। बहुत कम शोबे ऐसे हैं जहाँ उर्दू पढ़े-लिखे लोगों की गुंजाइश रह गई है। इसके बावजूद भारत में अब उर्दू की तरफ़ तवज्जो दी जा रही है। इसकी मक़बूलियत का ये आलम है कि फ़िल्मों में ज़्यादातर उर्दू का इस्तेमाल होता है, उर्दू गीतों और ग़ज़लों को लोग शौक़ से सुनते और गुनगुनाते हैं।

सवाल- अच्छी शायरी आप किसे कहते और समझते हैं?
जवाब- अच्छी शायरी की बु‍‍‍नियादी सिफ़त ये होती है कि लिखने वाला किसी चीज़ के बारे में जिस तरह महसूस करे उसे मुख़्तसर अल्फ़ाज़ में ऐसे बयान कर दे कि पढ़ने वाला भी उसे वैसा ही महसूस करने लगे। अच्छी शायरी में नया ख़्याल और नया अन्दाज़ ए बयान बहुत अहम सिफ़ात होती है। अच्छी शायरी वो होती है जिसे एहल ए नज़र पसन्द करें। एहल ए नज़र में नक़्क़ाद भी हैं और ऐसे लोग भी जो नक़्क़ाद नहीं हैं लेकिन अदबी शऊर रखते हैं।

सवाल- अब हम चाहेंगे आप से आपके कुछ पसन्दीदा अशआर सुनना-
जवाब- वैसे तो मेरा हर शे'र मुझे पसन्द है, फिर भी आपकी ख़्वाहिश का एहतेराम करते हुए चन्द शे'र पेश ए खिदमत हैं।

थोड़ी सी रोशनी है इसे जो भी लूट ले
जुगनू मियाँ के पास खज़ाना तो है नहीं

कहाँ-कहाँ से किया कस्ब ए नूर मत पूछो
किसी की माँग़ में छोटी सी केहकशाँ के लिए

मचलती रही बेहया तिशनगी
मगर मैं समन्दर से क्या माँगता

कमगोई ने इज़्ज़त रख ली, बन्द है इज़्ज़त लाखों की
वरना मुज़फ़्फ़र लुत्फ़ आ जाता, खुलती सीप निकलती रेत

बुरी नहीं है मुज़फ़्फ़र कोई भी सिंफ़ ए सुख़न
क़लम ग़ज़ल के असर में रहे तो अच्छा है

मुज़फ़्फ़र साहब आपके पास इल्म ओ फ़न का कभी न खत्म होने वाला खज़ाना है। जी चाहता है आप से बातों का सिलसिला कभी खत्म न हो। लेकिन वक़्त अपना काम करता है किसी को मनचाही मोहलत नहीं देता। आपको भी और मुझे भी बक़ौल शायर 'और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा' इसलिए अब इजाज़त दीजिए 'फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया'।

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