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सिकन्दर हमीद इरफ़ान की शायरी

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अजीज अंसारी

Aziz AnsariWD
क़रीब बीस साल पहले एक नौजवान खन्डवा से आकाशवाणी के इन्दौर केन्द्र पर युववाणी प्रोग्राम में अपना कलाम सुनाने के लिए मदऊ किया जाता था। तन्दरुस्त-ओ-तवाना, ख़ुश लिबास-ओ-ख़ुश मिज़ाज, ये नौजवान था सिकन्दर हमीद इरफ़ान। मैं तब से उसे न सिर्फ़ जानता-पचानता हूँ बलके उसके अख़लाक़ और उसकी शायरी की क़द्र भी करता हूँ। उसके कलाम में संजीदगी और पुख़्तगी को देखते हुए उसे उसी वक़्त से सीनियर शोअरा के प्रोग्राम 'बज़्म-ए-सुख़न' में मदऊ किया जाने लगा था।

सरकारी मुलाज़िमत में अफ़सरों का तबादला होना आम बात है। कुछ सालों बाद मेरा भी तबादला इन्दौर से दिल्ली हो गया। तबादला हो जाने पर मेरी इरफ़ान से तो नहीं लेकिन उनकी ग़ज़लों से बराबर मुलाक़ात होती रही। कुछ लोग अपने कलाम को शाए करने के मोआमले में बड़े कंजूस होते हैं लेकिन इरफ़ान के साथ एसा नहीं हैं। वो न सिर्फ़ छपते हैं बलके ख़ूब छपते हैं। मैं मुल्क के मुख़्तलिफ़ रिसाइल में उनका कलाम पढ़ता रहा हूँ। जब भी इनकी कोई ग़ज़ल किसी रिसाले में देखता तो मुझे दिली ख़ुशी का एहसास होता, उनका ये शौक़ आज भी जारी है।

  अगर किसी ज़रख़ेज़ ज़ेह्न को मोअतबर रहनुमाई मिल जाए तो कहना ही क्या। मुझे नहीं मालूम सिकन्दर हमीद इरफ़ान की रहनुमाई आजकल कौन कर रहा है। लेकिन उन्हें एक अच्छे और सच्चे रहनुमा की सख़्त ज़रूरत है।      
उर्दू अदब और हिन्दी साहित्य की कई नामवर हस्तियों ने खंडवा में जनम लिया है। आज भी इस सरज़मीं के फ़नकार पूरे मुल्क में इज़्ज़त की नज़र से देखे जाते हैं। जहाँ तक उर्दू अदब का सवाल है तो डॉक्टर मुजफ्‍फर हनफ़ी की शोहरत मुल्क से बाहर पाकिस्तान, बरतानिया और अमेरिका तक पहुँच चुकी है। वहाँ के अख़बारात ने आप पर तफ़सीली फ़ीचर्स, तसावीर के साथ शाए किए हैं। वहाँ की अदबी अंजुमनों ने आपके एज़ाज़ में और आपकी सदारत में मुशाएरे मुनअक़िद किए हैं साथ ही एज़ाज़ात और इनआमात से आपको नवाज़ा है।

ये सब मैं इसलिए लिख रहा हूँ के अगर शहर का एक फ़नकार अपने फ़न की बुलन्दियों को छूता है तो उसका असर बच्चों और नौजवानों पर ज़रूर पड़ता है। वो भी उस अज़ीम फ़नकार के नक़्शे-क़दम पर चल कर अपनी महनत और लगन से उस जैसा बनने की कोशिश करते हैं।

सिकन्दर हमीद इरफ़ान के ज़ेह्न में भी कहीं न कहीं डॉ. मुज़फ़्फ़र हनफ़ी और उनकी इज़्ज़त-ओ-शोहरत ज़रूर होगी। इल्म की कोई इंतिहा नहीं होती। जो जितनी कोशिश और महनत करेगा उसे कामयाबी भी उसी मुनासिबत से हासिल होगी। अगर किसी ज़रख़ेज़ ज़ेह्न को मोअतबर रहनुमाई मिल जाए तो कहना ही क्या। मुझे नहीं मालूम सिकन्दर हमीद इरफ़ान की रहनुमाई आजकल कौन कर रहा है। लेकिन उन्हें एक अच्छे और सच्चे रहनुमा की सख़्त ज़रूरत है।

रिसालों में कलाम शाए हो जाने से या किताबों पर माहेरीन की राय हासिल कर लेने से किसी ख़ुश फ़हमी में मुबतिला नहीं हो जाना चाहिए। सिकन्दर हमीद इरफ़ान एक समझदार और बाशऊर शायर हैं, उन्हें बुज़ुर्ग और कोहना मश्क़ शोअरा जैसे क़ाज़ी हसन रज़ा और जनाब ज़ियाउद्दीन ज़िया की रहनुमाई भी मिलती रही है उन्हें ये सिलसिला आगे भी जारी रखना चाहिए।

जहाँ तक उनकी शायरी का सवाल है तो वो रिवायत के दिलदादा होते हुए भी अपने कलाम में नये तजरुबात कर रहे हैं। दौरे-हाज़िर का मौजूदा माहौल उनके फ़िक्र-ओ-ख़्याल से दूर नहीं है।

परचमे-अम्न हैं घरों पे सजे
फिर सुलगती ये बस्तियाँ क्यों हैं

अपने इस शहर की फ़िज़ाओं में
साँस लेना भी अबतो मुश्किल है

ज़रा सा ग़म हो तो होते हो नीम जान मियाँ
हमारे सर से गुज़रते हैं आसमान मियाँ

लिपटी हुई है वक़्त से मायूसियों की धूप
कितनी उदासी आज की इस दोपहर में है

तहरीर के बदन से टपकने लगा लहू
लोआज फिर ख़्याल का पैमाना भर गया

इसी तरह कई अच्छे अशआर उनकी नई किताब 'सिमटते दायरे' में मिल जाएँगे। ग़ज़लों के साथ-साथ वो नज़्में, क़तआत, दोहे और सलासी भी कह रहे हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है के उनकी दिलचस्पी अच्चों के अदब में बढ़ती जा रही है। बच्चों के लिए अच्छे अदब की सख़्त ज़रूरत है। उर्दू में बनिसबत दूसरी ज़ुबानों के बच्चों के अदब पर बहुत कम काम हुआ है। बच्चों के लिए उनकी दो किताबें शाए हो चुकी हैं, उम्मीद है आगे भी उनके क़लम से अच्छा अदब तख़लीक़ होता रहेगा।

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