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गजल : शाद अज़ीमाबादी

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हमें फॉलो करें गजल शाद अज़ीमाबादी
, बुधवार, 21 मई 2008 (16:15 IST)
ढूँढोगे गर मुल्कों मुल्कों, मिलने के नहीं 'नायाब' हैं हम --------------नहीं मिलने वाले
ताबीर है जिस की हसरत-ओ-ग़म, ऎ 'हमनफ़सो' वो ख्वाब हैं हम--------साथियों

WDWD
ऎ दर्द बता कुछ तू ही बता, अब तक ये 'मोअम्मा' हल न हुआ---------पहेली
हम में है दिल-ए-बेताब 'निहाँ', या आप दिल-ए-बेताब हैं हम---------छुपा हुआ

मैं हैरत-ओ-हसरत का मारा, खामोश खड़ा हूँ 'साहिल' पर---------------किनारा
दरया-ए-मोहब्बत कहता है, आ कुछ भी नहीं 'पायाब' हैं हम ------------इतना पानी जिसमें केवल पांव डूबें

हो जाए बखेड़ा पाक कहीं, पास अपने बुला लें बेहतर है
अब दौर-ए-जुदाई से उनके, ऎ आह बहुत बेताब हैं हम

लाखों ही मुसाफ़िर चलते हैं, मंज़िल पे पहुँचते हैं दो एक
ऎ 'एहल-ए-ज़माना' क़द्र करो, नायाब न हों 'कमयाब' हैं हम------------दुनिया वाले, कम मिलने वाले

'मुर्ग़ान-ए-क़फस' को फूलों ने, ऎ शाद ये कहला भेजा है---------------पिंजरे के पंछी, क़ैदी
आजाओ जो तुम को आना है, ऐसे में अभी 'शादाब' हैं----------------खिले हुए, जवान

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