1.
मुझको तुझसे जो कुछ मोहब्बत है
ये मोहब्बत नहीं है आफ़त है
लोग कहते हैं आशिक़ी जिसको
मैं जो देखा बड़ी मुसीबत है
बन्दे एहकामे अक़्ल में रहना
ये भी इक नौ की ही हिमाक़त है
एक ईमान है बिसात अपनी
न इबादत न कुछ रियाज़त है
आ बुतों के फ़ुसूँ के दाम में यूँ
दर्द ये भी ख़ुदा की क़ुदरत है
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2.
हमने किस रात नाला सर न किया
पर उसे आह ने असर न किया
सबके हाँ तुम हुए करम फ़रमा
इस तरफ़ को कभी गुज़र न किया
क्यूँ भवें तानते हो बन्दानवाज़
सीना किस वक़्त में सिपर न किया
कितने बन्दों को जान से खोया
कुछ ख़ुदा का भी तूने डर न किया
देखने को रहे तरसते हम
न किया रहम तूने पर न किया
आप से हम गुज़र गए कब के
क्या है ज़ाहिर में गो सफ़र न किया
कौन सा दिल है वो के जिस में आह
ख़ाना आबाद तूने घर न किया
तुझसे ज़ालिम के सामने आया
जान का मैंने कुछ ख़तर न किया
सबके जोहर नज़र में आए दर्द
बेहुनर तूने कुछ हुनर न किया।