रहमतें बरसेंगी-रहमत की घटा छाई है
ईदे कुरबाँ की ज़माने में बहार आई है
तू न आएगा तो तेरा ही ख़्याल आएगा
ईद का दिन तेरी यादों में गुज़र जाएगा।
दिल तमाशा है मेरा, दिल ही तमाशाई है
आज तो फूल भी कहते हैं सभी खिल-खिल के
ईद तो हम भी मनाएँगे गले मिल-मिल के
ईद जब आई है हर शै ने ग़ज़ल गाई है
अब कोई देश में अदना है न आला होगा
अब ग़रीबी को अमीरी से न शिकवा होगा
ईद फिर से यही पैगामे वफ़ा लाई है।
- अज़ीज़ अंसारी