1.
क़सम है आपके हर रोज़ रूठ जाने की
के अब हवस है अजल को गले लगाने की
वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा अल्लाह
जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की
फूँका हुआ है मेरे आशियाँ का हर तिनका
फ़लक को ख़ू है तो हो बिजलियाँ गिराने की
हज़ार बार हुई गो मआलेगुल से दोचार
कली से ख़ू न गई फिर भी मुस्कुराने की
मेरे ग़ुरूर के माथे पे आ चली है शिकन
बदल रही है तो बदले हवा ज़माने की
चिराग़े देरो हरम कब के बुझ गए ए जोश
हनोज़ शम्मा है रोशन शराबख़ाने की
2.
ख़ुद अपनी ज़िन्दगी से वेहशत सी हो गई है
तारी कुछ ऐसी दिल पे इबरत सी हो गई है
ज़ौक़े तरब से दिल को होने लगी है वेहशत
कुछ ऐसी ग़म की जानिब रग़बत सी हो गई है
सीने पे मेरे जब से रक्खा है हाथ तूने
कुछ और दर्दे दिल में शिद्दत सी हो गई है
मुमकिन नहीं के मिलकर रसमन ही मुस्कुरा दो
तुमको तो जैसे हमसे नफ़रत सी हो गई
अब तो है कुछ दिनों से यूँ दिल बुझा-बुझा-सा
दोनों जहाँ से गोया फ़ुरसत सी हो गई
वो अब कहाँ हैं लेकिन ऐ हमनशीं यहाँ तो
मुड़-मुड़ के देखने की आदत सी हो गई है
ऐ जोश रफ़्ता-रफ़्ता शायद हमारे दिल से
ज़ौक़े फ़सुरदगी को उल्फ़त सी हो गई है
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3.
वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे
अल्लाहरे ख़ाकसारिए रिनदाँने बादा ख्वार
रश्के ग़ुरूरो क़ैसरो कसरा कहें जिसे
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई
इस चर्ख़े नाज़ से क़दे बाला कहें जिसे
ज़ुल्फ़े हयात नोएबशर में है आज तक
ज़ख़्मे गुनाहे आदम ओ हव्वा कहें जिसे
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब
दिल की ज़ुबाँ में वाद ए फ़रदा कहें जिसे
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीमे ज़ुल्फ़
मेरी नज़र है चेहरा ए ज़ेबा कहें जिसे
लो आ रहा है वो कोई मस्तेख़राम से
इस चाल से के लरज़िशे सेहबा कहें जिसे
तेरे निशाते ख़ाना ए अमरोज़ में नहीं
वो बुज़दिली के ख़तरा ए फ़रदा कहें जिसे
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे
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