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एहसान (एहसान बिन दानिश) की ग़ज़लें

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हमें फॉलो करें एहसान बिन दानिश की ग़ज़लें
, गुरुवार, 24 जुलाई 2008 (17:24 IST)
1.
मैं बे अदब हुआ कि वफ़ा में कमी हुई
होंटों पे क्यों है 'मोहरेख़मोशी'लगी हुई---चुप रहने की मोहर

आँखों की नींद दिल का सुकूं ख़्वाब होगया
मैं सोचता हूँ ये भी कोई ज़िन्दगी हुई

मुमकिन हो जिस तरह से भी तूफ़ाँ में लो पनाह
कश्ती कोई मिली भी किनारे लगी हुई

कमबख़्त दिल जला है तो घर भी जला के देख
दुनिया को कुछ पता तो चले रोशनी हुई

एहसास मर न जाए तो इंसान के लिए
काफ़ी है एक राह की ठोकर लगी हुई

जिस का न था ख़्याल वो 'मेहशर बपा हुआ'---क़्यामत
जिस बात की 'उमीद' नहीं थी वही हुई----उम्मीद

आँसू बहे तो दिल को मोयस्सर हुआ सुकून
पानी लगा तो 'कश्त-ए-तमन्ना' हरी हुई--इच्छाओं की खेती

आई न उनके सामने होंटों पे दिल की बात
हर चन्द गाह गाह मुलाक़ात भी हुई

वो जब कभी मिले हैं तो ये कह के रह गए
मुद्दत के बाद आपको देखा खुशी हुई
-------------
2.
कभी मुझ को साथ ले कर कभी मेरे साथ चल के
वो बदल गए अचानक मेरी ज़िन्दगी बदल के

हुए जिस पे मेहरबाँ तुम कोई खुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकलीं मेरे आँसूओं में ढल के

तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख के क़ुरबाँ 'दिल-ए-ज़ार' ढूंडता है---------परेशान दिल
वही चमपई उजाले वही सुरमई धुंदलके

कोई फूल बन गया है कोई चाँद कोई तारा
जो चिराग़ बुझ गए हैं तेरी अंजुमन में जल के

मेरे दोस्तो खुदारा मेरे साथ तुम भी ढूँढ
वो यहीं कहीं छुपे हैं मेरे ग़म का रुख बदल के

तेरी बेझिझक हंसी से न किसी का दिल हो मैला
ये नगर है आईनों का यहाँ सांस ले संभल के

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