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क़ैफ़ी आज़मी
खारो-ख़स1 तो उठें, रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया, क़ाफ़िला तो चले
चाँद-सूरज बुजुर्गों के नक़्शे-क़दम2
ख़ैर बुझने दो इनको, हवा तो चले
हाकिमे-शहर, ये भी कोई शहर है
मस्जिदें बंद हैं, मयकदा3 तो चले
इसको मज़हब कहो या सियासत4 तो चले
खुदकुशी का हुनर तुम सिखा तो चले
इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा
आज ईंटों की हुरमत5 बचा तो चले
बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें
मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले।
1. झाड़ झंखाड़, 2.पद चिह्न 3. मदिरालय 4. राजनीति 5. मर्यादा