ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है, ग़म-ए-जमाना मसल रहा है
मगर मेरे दिन गुज़र रहे हैं मगर मेरा वक्त टल रहा है
वोह अब्र आया, वो रंग बरसे, वो कैफ़ जागा वो जाम खनके
चमन में यह कौन आ गया है, तमाम मौसम बदल रहा है
मेरी जवानी के गर्म लम्हों पे डाल दे गेसुओं का साया
यह दोपहर कुछ तो मोतदिल हो, तमाम माहौल जल रहा है
न देख ओ महजबीं मेरी सम्त इतनी मस्ती भरी नज़र से
मुझे यह महसूस हो रहा है शराब का दौर चल रहा है
'अदम' ख़राबात की सहर कि बारगाह-ए-रमूज़-ए-हस्ती
इधर भी सूरज निकल रहा है, उधर भी सूरज निकल रहा है।