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नवाब एहसान अली बहादुर ---- इन्दौर

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पेशकश : अज़ीज़ अंसारी

1. क्या कहें तुम से के हम हिज्र* में क्या करते हैं-------जुदाई
याद इक भूलने वाले को किया करते हैं

अब ये हालत है मरीज़-ए-ग़म-ए-फ़ुरक़त* की तेरे-------तेरी जुदाई के बीमार
मुंह से कहता नहीं कुछ अश्क* बहा करते हैं---------आँसू

हम जो करते हैं वफ़ा तुम उसे कहते हो जफ़ा*------अत्याचार
वो जो करते हैं जफ़ा भी तो बजा* करते हैं-------उचित

हो गई सदमा-ए-फ़ुरक़त* से ये हालत एहसान--------जुदाई का दुख
दोस्त भी अब मेरे मरने की दुआ करते हैं

2. नीची निगाह उनकी अजब काम कर गई
इक फांस थी के दिल से जिगर तक उतर गई

शोख़ी* के साथ यूँ तेरी तिरछी नज़र गई-----चंचलता
बिजली सी इक तड़प के इधर से उधर गई

मिन्नतकशे तबीब* हो क्यों आपका मरीज़------हकीम का एहसानमन्द
थोड़ीसी रह गई है बहुत तो गुज़र गई

जल जल के एक रात में कर दी तमाम उम्र
हाँ! शम्मा दिल जलों में मगर नाम कर गई

मिलते ही फिर नज़र से नज़र इतना याद है
इक हूक उठ के दिल से मेरे ता जिगर* गई---------जिगर तक

इतना ही राज़-ए-तीर-ए-नज़र मुनकशिफ़*हुआ-----नज़रों के तीर का रहस्य मालूम हुआ
जितनी के जिस के ज़ख़्म पे गहरी नज़र गई

'एहसान' देखो टूटने पाए न क़ुफ़्ल-ए-ज़ब्त*--------सय्य्म का ताला
लब हिल गए तो लज़्ज़त-ए-ज़्ख़्म-ए-जिगर*गई-----जिगर के घावों का स्वाद

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