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मोमिन की ग़ज़ल

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, मंगलवार, 8 जुलाई 2008 (11:04 IST)
1. वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेश्तर, वो करम जो था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो गिले वो शिकायतें, वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो कि न याद हो

कभी हममें तुममें भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो कि न याद हो

जिसे आप कहते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ मोमिन-ए-मुबतिला, तुम्हें याद हो कि न याद हो

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