दिलनशीं ज़ुल्फ़ का आहंग लगे
हर अंधेरा मुझे गुल रंग लगे
मैं कि सीक़लगर मआनी ठहरा
आईने मुझको मिले ज़ंग लगे
कुंज-ए-हस्ती हो कि सहरा-ए-अदम
अर क़बा मुझको बहुत तंग लगे
आदमी तो है खुदा का साया
और मुझको सबब-ए-नंग लगे
गुलरुखो! क्या हो अगर तुमको भी
ज़िन्दगी दस्त-ए-तहे संग लगे
हाय! अफ़सुर्दा निगाही अपनी
धूप भी साए के हमरंग लगे
शर्त है उससे मुखातिब होना
नस्र भी शे'र का आहंग लगे