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ग़ज़ल - मीर तक़ी मीर

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अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लू
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू क

यह एैश के नहीं हैं याँ रंग और कुछ ह
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू क

बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत क
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का

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