क्या मद्द-ऐ-नज़र है यारों से तो कहिए
गर मुँह से नहीं कहते, इशारों से तो कहिए
हाल-ए-दिल बेताब कहा जाए जो हमसे
गर कहिये न लाखों से हज़ारों से तो कहिए
इस गोहर ऐ दन्दाँ पे वे अगर सूझे कोई बात
मौती तो हैं क्या माल, सितारों से तो कहिए
जिस राह से शानः है गया ज़ुल्फ़ ए रसा में
उस रस्ते को इन सीनः फ़िगारों से तो कहिए
कहिए न तंग जर्फ़ से ऐ ज़ोक़ कभी राज़
कहकर अगर सुन्ना हो हज़ारों से तो कहिए