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अशआर - सय्यद सुबहान अंजुम

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, बुधवार, 16 अप्रैल 2008 (11:50 IST)
Aziz AnsariWD
करम फरमा तेरी यादों के लश्कर टूट जाते हैं
निगाहों में जो रहते हैं वो मंजर टूट जाते हैं

खुशी को बाँटने वाले भी अक्सर टूट जाते हैं
हूदूद-ए-जब्त से आगे समंदर टूट जाते हैं

अगर ख़ामोश रहते हैं तो दिल पर बोझ रहता है
अगर हम बोलते हैं कुछ तो कहकर टूट जाते हैं

मुहब्बत हो तो रिश्‍ते और भी मजबूत हो जाएँ
मगर बिजली ‍गिरे दिल पर तो फिर घर टूट जाते हैं

अकीदत जिनसे होती है उन्हें चाहत भी मिलती है
जिन्हें निस्बत नहीं मिलती वो पत्थर टूट जाते हैं

तेरी कुर्बत में पलते हैं तेरी चाहत में चलते हैं
तेरी फुर्कत में हम दिल के बराबर टूट जाते हैं

वफा में जीने वालों की अजब है दास्ताँ-अंजुम
कहीं वो डूब जाते हैं कहीं पर टूट जाते हैं।

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