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मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
मुनव्वर राना के अशआर
कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिरऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँजो भी दौलत थी वह बच्चों के हवाले कर दी जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैंजिस्म पर मेरे बहुत शफ्फाफ़ कपड़े थे मगरधूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगाअगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता परिंदों के न होने से शजर अच्छा नहीं लगताधुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है