लिपट जाता हूं मां से...मुनव्वर राना
, बुधवार, 26 नवंबर 2014 (17:56 IST)
लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं, हिन्दी मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूंढती होगी,
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है,
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है,
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है,
कली जब सो के उठती है, तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है,
मसाइल से घिरी रहती है, फिर भी मुस्कुराती है
मुनव्वर राना