1.
वैसे तो रोशनी के लिए क्या नहीं किया
लेकिन किसी चिराग़ पे क़ब्ज़ा नहीं किया
किस दिन हमें मिला न पयामे शगुफ़्त्गी
किस रोज़ ख़ुशबुओं ने इशारा नहीं किया
शाख़े गुलाब अपने लिए मसअला नहीं
ये और बात है के इशारा नहीं किया
देखा मगर हिजाबे तक़द्दुस की ओट से
उस चौदहवीं के चाँद को मैला नहीं किया
फिर दोनों अपने-अपने लबों में सिमट गए
यानी इक इत्तेफ़ाक़ को रुसवा नहीं किया
रक्खा है धड़कनों में ऐ जाने वफ़ा तुझे
परछाइयों में भी तेरा चर्चा नहीं किया
तुमने तो अपनी रोशनी ख़ुद में समेट ली
इक पल हमारे दिल में उजाला नहीं किया
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2.
जब तलक रतजगा नहीं होता
क़ुर्ब में ज़ाएक़ा नहीं होता
लम्स एहसास की अमानत है
जो ज़बाँ से अदा नहीं होता
सिर्फ़ दीदार तक रहूँ मेहदूद
ज़ायक़ा देर पा नहीं होता
हर शिकारी को ये नहीं मालूम
हर परिन्दा नया नहीं होता
अपनी तस्वीरें देखकर सोचो
कौन बेहरूपिया नहीं होता
थोड़ी शाइस्तगी ज़रूरी है
खुल के मिलना बुरा नहीं होता
आमने-सामने रहें तो क्या
आमना-सामना नहीं होता
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