1.
सदा ए साज़ भी दस्त ए हुनर की क़ैद में है
हमारा सोज़ ए जिगर नोहागर की क़ैद में है
वो नग़मगी ए मोहब्बत जिसे कहा जाए
किसी की ख़ास अदा के असर की क़ैद में है
महक गुलों के लिए आम था ज़माने में
वो अब ख़ुलूस ए बशर भी बशर की क़ैद में है
हिसार तोड़ दे इक पल में मेरे पैकर का
मगर ये साँस तो शाम ओ सहर की क़ैद में है
मैं कैसे उसकी रिहाई का फ़ैसला कर दूँ
मेरी हयात का हासिल नज़र की क़ैद में है
जो आफ़ताब जला देना चाहता था मुझे
किरन किरन मेरे बूढ़े शजर की क़ैद में है
फ़राख़ दिल तो है रिन्दो तुम्हारा ये साक़ी
वो इन दिनों कई एहले हुनर की क़ैद में है
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2.
दराज़ राहे सफ़र क्यूँ तलाश करता है
हुनर में रंगे हुनर क्यूँ तलाश करता है
अँधेरी शब में सहर क्यूँ तलाश करता है
वो जुगनूओं का नगर क्यूँ तलाश करता है
वो जिसकी तूने कभी फ़िक्रे आबोगिल ही न की
अब उस शजर में समर क्यूँ तलाश करता है
इसे ये शौक़ किसी रोज़ मार डालेगा
ये दिल नमक में शकर क्यूँ तलाश करता है
है उसके शिजरे में इक भीड़ आफ़ताबों की
वो सायादार शजर क्यूँ तलाश करता है
मैं सारे दश्त को पैरों से रौंदने वाला
पता नहीं मुझे घर क्यूँ तलाश करता है
कहीं मिलेगा तो पूछूँगा चाँद से साक़ी
वो मेरे ज़ख़्मे जिगर क्यूँ तलाश करता।
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