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ग़ज़लें : मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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1. हमसायों के अच्छे नहीं आसार खबरदार
दीवार से कहने लगी दीवार खबरदार

हुशयार कि आसेब मकानों में छुपे हैं
महफ़ूज़ नहीं कूचा-व-बाज़ार खबरदार

कौनैन में कोहराम ज़मीं टूट रही है
जुंबिश न करो ओई भी ज़िनहार खबरदार

तीरों की है बोछार क़दम रोक उधर से
इस मोड़ पे चलने लगी तलवार खबरदार

नेज़ों पे रहे हाथ कोई आँख न झपके
शबखून न पड़ जाए खबरदार खबरदार

आँधी को पहुँचने लगे पत्तों के बुलावे
अपनों से रहे शाख-ए-समरदार खबरदार

हाज़ाद पे ऎसे में भरोसा है खतरनाक
दुश्मन है तेरी धाक में हुशयार खबरदार

अहसास न इस मारिका-आराई में कट जाय
आमद की मज़फ़्फ़र पे है यलग़ार खबरदार
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2.. ऊँचे महलों में बैठा डर मेरा है
पत्थर, तकिया, मिट्टी, बिस्तर मेरा है

डेरा है दुनिया भर के आसेबों का
मैं बेचारा समझा था घर मेरा हए

किससे माँगूं अपने ज़खमों का तावान
अपनी गर्दन पर तो खंजर मेरा है
खतरे में है गर्दन सर-अफ़राज़ों की
उन सर अफ़राज़ों में इक सर मेरा है

वो मूरख समझा है मैं घाटे में हूँ
साहिल उसका और समन्दर मेरा है

मासूमों की गिनती करने निकला हूँ
अपने ऊपर पहला पत्थर मेरा है

जिसकी जैसी सीरत वैसा ही मफ़हूम
इक आईना शे'र मुज़फ़्फ़र मेरा है
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3,.शे'र हमारे नश्तर जैसे, अपना फ़न है मरहम रखना
क्या ग़ज़लों में ढोल बजाना, शाने पर क्या परचम रखना

याद करो क्या फ़रमाया था बाबा ने गिरने से पहले
घोड़े पर तकया मत करना, हिम्मत को ताज़ादम रखना

उन पेड़ों के फल मत खाना, जिनको तुमने ही बोया हो
जिन पर हों अहसान तुम्हारे उन से आशाएं मत रखना

दाएं हाथ में नेज़ा हो तो, बाएं शाने पर मशकीज़ा
बाहर कैसा भी बन्जर हो,अन्दर से मिट्टी नम रखना

लुत्फ़ उसी से बातों में है, तेज उसी का रातों में है
खुशियाँ चाहे जितनी बाँटो, घर में थोड़ा सा ग़म रखना

सिंहासन ऊँचा होता है, दरबारी बौने लगते हैं
राजमुकुट भारी होता है, काम उसका सर को खम रखना

4. सब की आवाज़ में आवाज़ मिला दी अपनी
इस तरह आपने पहचान मिटा दी अपनी

हम जो दो पल के लिए बैठ गए साए में
जल के हमसाए ने दीवार गिरा दी अपनी

लोग शोहरत के लिए जान दिया करते हैं
और इक हम हैं कि मिट्टी भी उड़ा दी अपनी

देखिए खुद पे तरस खाने का अंजाम है ये
इस तरह आपने सब आग बुझा दी अपनी

दिलबरी का अजब अन्दाज़ निकाला उसने
चाँद के परदे पे तस्वीर बना दी अपनी

मेरे अशआर मुज़फ़्फ़र नहीं मरने वाले
मैंने हर शे'र में इक चीख छुपा दी अपनी
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5. शामियाने मेरी ग़ीबत में हवा तांती है
गाँव में मेरे न होने से बड़ी शांती है

वो बगूला है कि उड़ने पे सदा आमादा
मैं जो मिट्टी हूँ तो मिट्टी भी कहाँ मांती है

देखना कैसे हुमकने लगे सारे पत्थर
मेरी वहशत को तुम्हारी गली पहुँचाती है

फूल बनती है कली हंसते हंसाते, लेकिन
उसके इल जो गुज़रती है वही जांती है

मेरी कोशिश है कि दुनिया को बना दूँ जन्नत
और दुनिया मुझे आवारों में गरदांती है

हमको इक हाल में क़िस्मत नहीं रहने देती
कभी मिट्टी में मिलाती है कभी छांती है

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