आज के दौर में किराने की दुकान का चलन कम हो गया है क्योंकि अब किराने की दुकान सुपरमार्ट के रूप में बदल चुकी हैं। सुपरमार्ट से खरीदारी करना हमारे लिए काफी आसान है क्योंकि एक ही जगह पर एक प्रोडक्ट के कई ब्रांड मौजूद होते हैं और आप अपने अनुसार सामान चुन सकते हैं।
अगर आप टियर II या टियर I शहर में रहते हैं तो आपने डी-मार्ट का नाम ज़रूर सुना होगा और आपमें से कई लोग डी-मार्ट से ही खरीदारी करना पसंद करते होंगे क्योंकि डी-मार्ट में दूसरे सुपरमार्ट की तुलना में काफी सस्ते प्रोडक्ट होते हैं और काफी ज़्यादा डिस्काउंट में आपको लगभग हर ब्रांड के प्रोडक्ट मिल जाते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि डी-मार्ट में सामान इतना सस्ता कैसे होता है और कैसे इतने कम भाव होने के बाद भी डी-मार्ट प्रॉफिट कमा रहा है? तो चलिए जानते हैं कि क्या है डी-मार्ट की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी.......
क्या है डी-मार्ट का इतिहास?
डी-मार्ट की शुरुआत राधाकिशन दमानी ने मुंबई में 2002 में अपना बाजार के नाम से शुरू की थी। राधाकिशन दमानी ने मुंबई में 2 अपना बाजार से किराना दुकान खोली थी जो उनकी ही कंपनी Avenue Supermart Ltd के तहत दर्ज की गई थी। आज डी-मार्ट की भारत में 200 से भी ज़्यादा दुकाने हैं। इसके साथ ही डी-मार्ट की शुरुआत अमेरिकी मार्ट वॉलमार्ट (Walmart) की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के अनुसार की गई थी, इसलिए डी-मार्ट को भारत का वॉलमार्ट भी कहा जाता है।
थोक में ख़रीदा जाता है सामान
डी-मार्ट अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी में B2C (Business-to-Consumer) मॉडल का प्रयोग करता है यानी बिना किसी दूसरे रिटेलर (retailer) की दखलअंदाजी के सीधा अपने सामान को ग्राहक तक पहुंचाता है। इसके साथ ही डी-मार्ट थोक में सामान को खरीदता है। इन दो मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के कारण डी-मार्ट कम दाम में ग्राहक को सामान उपलब्ध करवाता है, क्योंकि सीधा थोक से सामान खरीदने से वह सस्ते में पड़ता है और रिटेलर का खर्चा भी बचता है।
विक्रेता को करता है 15 दिन के अंदर पेमेंट
डी-मार्ट अपने विक्रेता को 15 दिन के अंदर ही भुगतान कर देता है, जो कि बाकी सुपरमार्ट की तुलना में काफी जल्दी है। इसके कारण डी-मार्ट को अपने विक्रेता से ज़्यादा डिस्काउंट भी मिल जाता है जो डी-मार्ट अपने ग्राहकों को प्रदान करता है। इसके साथ ही जो भी विक्रेता अपने प्रोडक्ट को डिस्प्ले करवाना चाहते हैं यानी उसे फुटफॉल श्रेणी में रखना चाहते हैं तो डी-मार्ट इसके लिए भी विक्रेता से फीस लेता है।
मार्ट खोलने के लिए खरीदी जाती है जगह
भारत में आज डी-मार्ट की 200 से भी ज़्यादा दुकाने हैं और ये सारी दुकाने किराए पर नहीं ली गई हैं। डी-मार्ट अपनी दुकान खोलने के लिए उस जगह को खरीद लेता है ताकि इस लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट (long-term investment) से किराए का खर्चा बचे और ये सारी दुकाने मिडिल क्लास के रेजिडेंशियल एरिया (residential area) के आसपास ही खोली जाती हैं।
हर 1 महीने में इनवेंटरी लाई जाती है
डी-मार्ट हर 1-2 महीने में अपनी इनवेंटरी को री-स्टॉक (re-stock) करता है जिससे स्टोरेज का खर्चा बचता है क्योंकि इनवेंटरी को ज़्यादा समय तक रखने के लिए ज़्यादा खर्चा होता है। इसके साथ ही डी-मार्ट मार्केट एवं ग्राहकों की डिमांड के अनुसार ही इनवेंटरी री-स्टॉक करता है।
विज्ञापन में कम खर्चा
आपने कभी भी डी-मार्ट के टीवी, रेडियो या दूसरे मीडिया में विज्ञापन नहीं देखे होंगे क्योंकि डी-मार्ट विज्ञापन में बहुत कम खर्च करता है। विज्ञापन के लिए डी-मार्ट आसपास की जगह पर होर्डिंग (Hoarding) का प्रयोग करता है और विशेष डिस्काउंट के लिए डी-मार्ट अख़बार में अपना विज्ञापन प्रकाशित करता है।
कम कर्मचारी लागत
डी-मार्ट हमेशा कम कर्मचारी रखता है जिससे पैसा भी कम खर्च होता है। डी-मार्ट अपने कैश काउंटर की संख्या को भी कम रखता है जिससे ज़्यादा कर्मचारी की ज़रूरत नहीं पड़ती इसके साथ ही 60% कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट (contract) के अनुसार नियुक्त किए जाते हैं।
ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा
डी-मार्ट रेडी ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा भी प्रदान करता है जिससे व्यक्ति अपने मोबाइल पर सामान आर्डर कर सकता है और चाहे तो होम डिलीवरी का ऑप्शन रख सकता है या अपने आस पास के डी-मार्ट दुकान से अपना आर्डर किया हुआ सामान पिक कर सकता है।