टिकट के लिए टकराव
- देहरादून से महेश पाण्डे एवं प्रवीन कुमार भट्ट
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों में टिकटों को लेकर मारामारी मची हुई है। उत्तराखंड राज्य विधानसभा की 70 सीटों के लिए दावेदारों की संख्या हजारों के पार है और टिकट फाइनल करने में पार्टियों के पसीने छूट रहे हैं। सबसे खराब हालत तो सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की है। इन दलों में शायद ही कोई ऐसा नेता होगा जो टिकट नहीं चाहता। एक ही सीट में इन दलों के दस-दस दावेदार हैं। पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, संगठन के नेता, प्रकोष्ठों के नेता, सीटिंग विधायक, दायित्वधारी, पिछला चुनाव हार चुके नेताओं सहित सभी विधानसभा में ही प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं।
इन दावेदारों के अलावा मंत्रियों और कद्दावर नेताओं के परिजन भी कई सीटों से अपनी ताल ठोंक रहे हैं। दावेदारों की बढ़ी संख्या और अलग-अलग गुटों द्वारा अपने-अपने नेताओं का नाम आगे किए जाने के कारण दोनों ही दल असमंजस की स्थिति में हैं। पहले अक्टूबर तक सभी प्रत्याशियों के नाम घोषित कर देने का दावा करने वाली कांग्रेस अभी तक एक भी प्रत्याशी का नाम तय नहीं कर पाई है। यह बात दीगर है कि प्रत्याशियों के चयन के लिए गठित कांग्रेस की हाईपावर कमेटी की बैठक तीन बार दिल्ली में हो चुकी है। कांग्रेसी दो बार सोनिया गांधी से और एक बार राहुल गांधी से टिकट के बारे में बात कर चुके हैं।
दिल्ली में कुछ दिनों पहले सोनिया गांधी के साथ हुई बैठक के बाद केंद्रीय संसदीय राज्यमंत्री हरीश रावत ने यह जरूर कहा कि राज्य की 70 सीटों में से 55 पर प्रत्याशी तय कर लिए गए हैं लेकिन फिलहाल पार्टी इन नामों को सार्वजनिक करने का साहस नहीं दिखा पा रही है। कांग्रेस में सिटिंग विधायकों के साथ ही पिछला चुनाव हार चुके मंत्री व विधायक सभी टिकट के दावेदार हैं। इनके अलावा तिवारी सरकार के समय लाल बत्ती देकर दायित्वधारी बनाए गए लगभग 300 नेता भी टिकट का दावा कर पार्टी की फजीहत करा रहे हैं।
इनके अलावा महिला कांग्रेस कम से कम 15 प्रतिशत सीटों पर टिकट की मांग रही है। हल्द्वानी, यमकेश्वर, धारचूला और कपकोट में तो महिला कांग्रेस ने अपना दावा तक ठोंक दिया है। कांग्रेस सेवा दल भी इस बार केवल सेवा नहीं करना चाहता बल्कि उसने भी पांच सीटों पर अपनी दावेदारी पेश की है। उत्तराखंड कांग्रेस सेवा दल ने ऋषिकेश, कर्णप्रयाग, बागेश्वर, सितारगंज व हरिद्वार सीटों पर अपना दावा पेश किया है। दावेदारी के इस सिलसिले में कांग्रेस का छात्र विंग भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन भी पीछे नहीं है। एनएसयूआई ने कालाढूंगी, देहरादून कैंट, सहसपुर और बागेश्वर सीटों से टिकट की मांग की है।
कांग्रेस के एक प्रमुख संगठन युवा कांग्रेस ने दावेदारी के सवाल पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन माना जा रहा है कि युवक कांग्रेस पांच सीटों पर टिकट की मांग कर रहा है। युवक कांग्रेस का फोकस देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में बताया जाता है। 21 नवंबर को दिल्ली में हुई कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बैठक में जिस तरह से फ्रंटल संगठनों-दावेदारों की सूची बनाने के निर्देश राज्य नेतृत्व को मिले उससे यह बात साफ हो गई है कि इस बार कांग्रेस में आनुषंगिक संगठनों के साथ ही महिलाओं को अधिक संख्या में टिकट मिलेंगे। कहा यह भी जा रहा है कि पिछली बार बागियों से परेशान रही कांग्रेस इस बार एक खास रणनीति के तहत फ्रंटल संगठनों को टिकट देकर बगावत पर लगाम लगाना चाहती है। सत्ताधारी भाजपा भी टिकट बंटवारे को लेकर इसी तरह की स्थिति में फंसी हुई है।
भाजपा में टिकट बंटवारे का परिदृश्य खंडूड़ी के सत्ता संभालने के बाद कुछ बदला-बदला लग रहा है। निशंक के जमाने में जिन नेताओं को बैकफुट पर धकेल दिया गया था वह अब न सिर्फ फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं बल्कि टिकट के मजबूत दावेदार भी बन गए हैं। उत्तराखंड में भाजपा हमेशा ही गंभीर रूप से गुटबाजी का शिकार रही है। टिकट बंटवारे को लेकर चल रही कवायद में इस गुटबाजी का असर न पड़े इसके लिए भाजपा ने पार्टी सभी दिग्गजों को साधने की कोशिश की है। भुवन चंद्र खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा कह रही थी कि चुनाव खंडूड़ी के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे लेकिन दूसरे गुटों की आपत्ति के बाद यूटर्न लेते हुए पार्टी ने भगत सिंह कोश्यारी को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी। पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद अब पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कर रही है।
यह बात दीगर है कि इस परिदृश्य से अब हाल के दिनों तक मुख्यमंत्री रहे डॉ. निशंक पूरी तरह से गायब नजर आ रहे हैं। यहां तक कि वे 27 नवंबर को देहरादून में हुई चुनाव अभियान समिति की बैठक में भी नहीं दिखाई दिए। तमाम दावों के बावजूद भाजपा भी अब तक प्रत्याशियों के बारे में कुछ तय नहीं कर पाई है। पहले पार्टी नवंबर में प्रत्याशी घोषित करने की बात कह रही थी लेकिन अब पार्टी ने यह घोषणा दिसंबर में करने की बात कही है। भाजपा की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि पार्टी अपने प्रत्याशियों की पहली सूची दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में जारी कर देगी।
टिकट को लेकर मची घमासान के बीच इन दिनों कांग्रेस और भाजपा के कई दिग्गजों की सांसें अटकी हुई हैं। भाजपा के कई सिटिंग विधायक जहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और आरएसएस द्वारा कराए गए अलग-अलग सर्वे में अपने खिलाफ रिपोर्ट आने के कारण टिकट न मिलने की आशंका से परेशान हैं वहीं कांग्रेस ने भी पुराने दिग्गजों को रास्ता दिखाने का नया फॉर्मूला निकाला है।
पार्टी ने संकेत दिया है कि पिछले चुनाव में 5,000 से अधिक वोटों से हारने वाले नेताओं को टिकट मिलने की संभावना कम ही है। 5,000 वोटों के अंतर के इस फॉर्मूले का असर कांग्रेस के कई पूर्व विधायकों के साथ ही मंत्रियों पर भी पड़ रहा है जो अपना चुनाव पिछली बार हार गए थे। अब यह नेता टिकट के जुगाड़ में रात-दिन एक कर रहे हैं। वहीं कई विधायकों और मंत्रियों की नकारात्मक रिपोर्ट आने से भाजपा में भी कई लोग टिकट को लेकर निश्चिंत नहीं हैं।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल का साफ-साफ कहना है कि टिकट वितरण में सिटिंग गेटिंग कोई मुद्दा नहीं है। विधायकों की रिपोर्ट को देखने के बाद ही टिकट पर विचार किया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष के इस रुख के बाद सत्ताधारी पार्टी के कम से कम छह विधायकों के टिकट खतरे में बताए जा रहे हैं जिसमें एक मंत्री भी शामिल हैं। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी की स्थिति की जानकारी जुटाने के लिए एजेंसियों की मदद लेने के साथ ही झारखंड और महाराष्ट्र के पार्टी कार्यकर्ताओं को भी उत्तराखंड के प्रत्येक जनपद में भेजा था जिनकी रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है। इससे पहले पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य भाजपा और संघ द्वारा विधायकों के बारे में जुटाए गए इनपुट का इंतजार कर रहा है।
राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बसपा के वर्तमान विधानसभा में 8 विधायक हैं। यह दीगर है कि दो विधायकों चौधरी यशवीर सिंह और काजी निजामुद्दीन को पहले पार्टी ने निलंबित किया और अब इन विधायकों में से चौधरी लोकदल में और काजी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दो विधायकों के अलग होने के बाद इस बात के आसार हैं कि बसपा इस बार सदन में अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी। हरिद्वार की मंगलौर और लंढौरा सीटों पर बसपा के विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस की दावेदारी को मजबूत माना जा रहा है।
नए परिसीमन में होने जा रहे चुनावों ने भी भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। कांग्रेस विधायक मयूख महर की कनालीछीना, अमृता रावत की बीरोंखाल, भुवन चंद्र खंडूड़ी की धूमाकोट, यशपाल आर्य की मुक्तेश्वर, डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' की थलीसेंण के साथ ही धारी, भिकियासेंण और नंदप्रयाग सीटें समाप्त होने के साथ ही मैदानी जिलों में इतनी ही सीटें बढ़ गई हैं।