उत्तरप्रदेश के जाटलैंड कहे जाने वाले इलाके में एक बार फिर राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) नेता अजितसिंह के राजनीतिक वजूद की परीक्षा होगी। इस बार वे कांग्रेस से गठजोड़ करके चुनावी जंग में उतरे हैं।
जब भी चुनाव का समय आता है, अजितसिंह पर सबकी निगाहें होती हैं, क्योंकि, राजनीतिक रूप से ऐसा माना जाता है कि जाट बेल्ट कहे जाने वाले पश्चिम उत्तरप्रदेश पर उनका अच्छा खासा असर है। इस कारण उनकी अहमियत बढ़ जाती है।
आरएलडी प्रमुख के राजनीतिक अतीत पर नजर डालें तो अजित सिंह फिलहाल कांग्रेस के साथी हैं। इससे पहले वे सपा, बसपा और भाजपा के साथ भी गठजोड़ कर चुके हैं।
कांग्रेस के साथ उनका गठजोड़ भी पहली बार नहीं है। इससे पहले वे 1996 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर बागपत से जीते थे। पहले वे केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार में खाद्यमंत्री बने थे। दोनों दलों के बीच ताजा गठबंधन कांग्रेस और आरएलडी दोनों की जरूरत है।
मायावती ने प्रदेश को चार टुकड़ों में बांटने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर अजितसिंह के हरित प्रदेश के मुद्दे को झटका दिया था। कांग्रेस को पश्चिम उत्तरप्रदेश में अपना खोया जनाधार पाने के लिए इस क्षेत्र के चुनाव के लिए बेहद निर्णायक माने जाने वाले मुस्लिमों के साथ ही जाट मतों की गहरी दरकार है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को पश्चिम उत्तरप्रदेश की 123 सीटों में से महज 3 सीटों पर ही जीत मिली थी।
बसपा की घेरेबंदी : पिछले चुनाव में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने लिए जनाधार की इमारत खड़ी की थी। उसने पश्चिम उत्तरप्रदेश के प्रस्तावित हरित प्रदेश और जाट पट्टी में अजित सिंह को ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी चिंता में डाल दिया है।
पिछले चुनाव में बीएसपी ने इस क्षेत्र में 68 सीटें जीती थीं। इस बार चुनाव में भी मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के अपने फॉर्मूले पर चलते हुए आरएलडी के जाट-मुस्लिम समीकरण की हवा निकालने के लिए 42 मुस्लिमों और 7जाटों को चुनावी जंग में उतारा है।
गठबंधन का फायदा : चुनाव के पिछले अनुभवों का इशारा है कि अजित सिंह के लिए अकेले चुनाव लड़ना फायदेमंद नहीं रहा। उन्होंने जब पिछला विधानसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ा तो आरएलडी को मात्र 10 सीटें ही मिलीं, जबकि साल 2002 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ने पर आरएलडी को 14 सीटें मिली थीं। साल 2009 का लोकसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा तो उनकी पार्टी की लोकसभा में सीटें 3 से बढ़कर 5 हो गईं। (नईदुनिया)