राहुल गांधी के चुनाव अभियान में मीडिया समिति की कमान संभालने वाले राज बब्बर हालांकि कांग्रेस में बहुत ज्यादा पुराने नहीं हैं लेकिन कांग्रेस के भीतर राज इस कदर घुल-मिल गए हैं कि अब कोई उन्हें पार्टी में मेहमान नहीं मानता है। पिछले कुछ सालों में राज बब्बर ने सोनिया और राहुल दोनों का भरोसा जीता है। फिल्म अभिनेता से राजनेता बने राज बब्बर के साथ राहुल गांधी का अच्छा संवाद है और राहुल की राजनीति के सामाजिक एजेंडे में राज बब्बर खरे उतरते हैं।
राहुल उत्तर प्रदेश में जातिवाद और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति खत्म करना चाहते हैं और राज बब्बर के पास न जाति का बल है और न सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ताकत। अपनी छवि, स्टारडम और सियासी मेहनत की बदौलत राज बब्बर की स्वीकार्यता सभी वर्गों और क्षेत्रों में है। युवा उन्हें दोस्त मानते हैं तो बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद देते हैं। स्वतंत्रता सेनानी सज्जाद जहीर परिवार के दामाद राज बब्बर को हिंदू-मुसलमान दोनों अपना मानते हैं।
थिएटर और सिनेमा में कामयाबी की इबारत लिखने वाले राज बब्बर का सियासी सफर हालांकि समाजवादी पार्टी से शुरू हुआ था लेकिन छात्र जीवन में भी वह छात्र राजनीति में सक्रिय थे। समाजवादी पार्टी में अमर सिंह के साथ उनके मतभेद इतने गंभीर हो गए कि उन्होंने बगावत की और दादरी के किसानों की लड़ाई भी लड़ी।
फिरोजाबाद लोकसभा सीट के उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव को 85 हजार वोटों से हराकर राज अपनी लोकप्रियता साबित कर चुके हैं। इस उपचुनाव के बाद राज बब्बर को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का सुझाव भी आया था लेकिन पार्टी में उनके नए होने का तर्क देकर इसे नहीं होने दिया गया।
इसके बावजूद राहुल गांधी ने राज बब्बर को अहमियत दी और उनके सुझाव पर राज को कांग्रेस कार्यसमिति में लिया गया। अब उन्हें मीडिया कमेटी का अध्यक्ष बनाकर राहुल के प्रचार अभियान की कमान सौंपी गई है। सूत्रों का कहना है कि राज बब्बर की मेहनत अगर रंग लाई तो उन्हें आगे भी अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।