Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

किसी को भी किसी के भी प्रति छह माह में हो सकता है प्यार...

हमें फॉलो करें किसी को भी किसी के भी प्रति छह माह में हो सकता है प्यार...

अनिरुद्ध जोशी

आजकल प्यार करने या होने का प्रचलन जरा ज्यादा होने लगा है। अब तो ऐसा करके लिव इन का प्रचलन भी बढ़ गया है। मतलब आजकल के लड़के और लड़कियां प्यार से एककदम आगे निकल चुके हैं। सचमुच जमाना बदल गया है, लेकिन एक बाद अभी तक नहीं बदली और वह यह है कि प्यार में टेंशन, बंधन, बेवफाई, धोखा और क्राइम। आज भी यह सब जारी है। फ्रेग मार्क ने कहीं कहा था कि 'सच्चा प्रेम भूत की तरह है, चर्चा उसकी सब करते हैं, देखा किसी ने नहीं।' कहते हैं कि प्यार किया नहीं जाता हो जाता है। कैसे? ऑटो जनरेट है क्या?
 
 
छह माह में किसी के भी साथ हो जाएगा प्रेम
अमेरिकी पत्रिका 'सायकोलॉजी टुडे' के संपादक रोबर्ट एप्सटेन ने कभी कहा था कि उन्होंने एक ऐसी प्रक्रिया तैयार की है, जिसमें छह महीनों में एक-दूसरे के प्रति प्यार पैदा किया जा सकता है। दूसरी ओर अगर यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल की डॉ. लेसेल डॉसन के शोध पर आपने विश्वास किया तो आपको हैरानी होगी। उनका कहना है कि दुनिया में प्यार एक बीमारी है और इस बीमारी का इलाज सिर्फ सेक्स है।
 
 
रूस की ड्यूक यूनिवर्सिटी में सम्मोहन के प्रयोग चलते थे। उनका मानना है कि जो बात व्यक्ति के आत्मसम्मान से जुड़ी है उसे छोड़कर सम्मोहन की अवस्था में उससे हर कार्य कराया जा सकता है। मसलन किसी भी व्यक्ति के मन में किसी के भी प्रति प्रेम जाग्रत किया जा सकता है। चाहे वह दुनिया की सर्वाधिक काली लड़की हो, लेकिन सम्मोहनकर्ता उसे इस बात का विश्वास दिला देगा कि वही लड़की तेरे लिए बनी है।
 
 
क्या देख और सोच कर होता है प्रेम?
खैर, ऐसे कई शोध आते हैं फिर उनका खंडन करने के लिए नए शोध आ जाते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या 'सच्चा प्रेम' करना या होना सचमुच ही मुश्किल है। लड़का क्या देखता है? शायद एक सुंदर चेहरे या फिगर वाली लड़की। लड़की क्या देखती है? चौड़े कंधे, दिलेरी और शायद मोटी जेब। ऐसा कहना भी मुश्किल है, क्योंकि यह तय होता है, किसी देश के प्रचलन, संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार। तब क्या प्यार भी बंधा है फैशन और परम्परा से?
 
 
अफ्रीका में एक समय यह प्रचलन था कि मोटे होंठों वाली लड़की बहुत सेक्सी होती है। उसी से प्रेम या विवाह करना चाहिए। इस धारणा के चलते लड़कियों ने अपने होंठों को मोटा करना शुरू कर दिया था। कई जगह इसके ठीक विपरीत प्रचलन है। आमतौर पर लड़का देह देखकर ही लड़की को पसंद करता है और लड़की इसके अलावा भी कुछ और देखती होगी, लेकिन वह भी संसार से जुड़ी बातें ही रहती हैं। शहरी बाबू और गांव के प्रेमी में से लड़की को चयन करना हो तो शायद शहरी बाबू के लिए वोटिंग ज्यादा होगी। यही बात लड़के पर भी लागू होगी।
 
 
तब फिर सच्चा प्रेम किसे कहें? फिल्मों में तो सच्चे प्रेम की बहुत दास्तानें बताई जाती हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा कम ही देखने में आता है कि किसी प्रेमी ने प्रेमिका के लिए या किसी प्रेमिका ने प्रेमी के लिए हीर-रांझा या सिरी-फरहाद जैसा काम किया हो। कभी-कभी सोचने में आता है कि इन पुराने प्रेमी-‍प्रेमिकाओं ने एक-दूसरे में क्या देखकर प्रेम किया होगा? क्या यह भी मनोविज्ञान की उन सारी हदों में आते हैं जिसे कि एक बीमारी कहा गया है?
 
 
शरीर ही शरीर से प्रेम करता है?
क्या प्रेम का परिणाम संभोग है या कि प्रेम भी गहरे में कहीं कामेच्छा ही तो नहीं? फ्रायड की मानें तो प्रेम भी सेक्स का ही एक रूप है। किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही लड़के और लड़कियों में एक-दूसरे के प्रति जो आकर्षण उपजता है उसका कारण उनका विपरीत लिंगी होना तो है ही, दूसरा यह कि इस काल में उनके सेक्स हार्मोंस जवानी के जोश की ओर दौड़ने लगते हैं। तभी तो उन्हें राजकुमार और राजकुमारियों की कहानियां अच्छी लगती हैं। फिल्मों के हीरो या हीरोइन उनके आदर्श बन जाते हैं।
 
 
आकर्षित करने के लिए जहां लड़कियां वेशभूषा, रूप-श्रृंगार, लचीली कमर एवं नितम्ब प्रदेशों को उभारने में लगी रहती हैं, वहीं लड़के अपने गठे हुए शरीर, चौड़े कंधे और रॉक स्टाइलिश वेशभूषा के अलावा बहादुरी प्रदर्शन के लिए सदा तत्पर रहते हैं। आखिर वह ऐसा क्यूं करते हैं? क्या यह यौन इच्छा का संचार नहीं है?
 
 
वे कहते हैं कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है। तब फिर 'मिलन' का अर्थ क्या? शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से मिलन में क्या फर्क है? प्रेमशास्त्री कहते हैं कि देह की सुंदरता के जाल में फंसने वाले कभी सच्चा प्रेम नहीं कर सकते। 

 
बन गई हैं लड़कियां समझदार?
हालांकि समझदार लड़कियां आजकल सोच-समझकर प्रेम करने लगी हैं। पहले तो बगैर सोचे-समझे प्रेम हो जाता था। आंख मिली नहीं की प्रेम हुआ, पहले का माहौल भी साफ-सुथरा और विश्वास योग्य था आजकल जिसने बगैर सोचे भरोसा किया तो समझे लॉटरी जैसा काम है खुल गई तो लाख की वर्ना जिंदगी खाक तो है ही। अधिकतर लड़किया तो बिल्कुल ही नहीं सोचती होगी? आए दिन अखबारों में किस्से और कहानियां छपते रहते हैं।
 
 
प्‍यार टेंशन पैदा करता है?
प्यार नहीं मिला तो टेंशन और मिल गया तो भी टेंशन। एक मित्र हैं मैंने उनसे कहा तुम्हें किस बात की चिंता है। कहने लगे क्या करें यार जीवन खाली-खाली लगता है। कोई जिंदगी में होना चाहिए। दूसरे मित्र ने तपाक से जबाव दिया अच्छा है जो अकेले हो वर्ना समझ में आ जाती की जिंदगी में तूफान भी होते हैं।...पता नहीं यह किसने कहा था कि प्‍यार टेंशन पैदा करता है और सेक्‍स उसे दूर करता है। और यह भी कि शादी विवेक पर मूर्खता की विजय है।
 
 
प्रेमी की भावना होती है कि तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं...तुम किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी। अबे मजनूं मियां जब वो तुमको ही नहीं चाहती तो टेंशन काहे को लेतो हों। प्यार और चाह में फर्क करना सीखों। प्यार स्वतंत्रता का पक्षधर है और चाहत तुम्हारे दिमागी दिवालिएपन की सूचना। जरा प्यार करके दो देखो। थोड़ा-सा प्यार हुआ नहीं की अधिकार जताने लग जाते हों...जैसे बस अब ये मेरी है। मेरी के लिए जिना भी तो सिखो मरने की झूठी कसमें मत खाओ।
 
 
प्यार एक बंधन है?
मानते आ रहे हैं कि प्यार या शादी एक बंधन है। प्यारा-सा बंधन। अजीब बात है कि बंधन भी प्यारा-सा होता है अर्थात हथकड़ी भी प्यारी-सी होती है। अरे नहीं साहिब ये वो बंधन नहीं ये जरा अलग किस्म का बंधन होता है। अच्‍छा तो अब बंधन भी अलग-अलग किस्म के होने लगे हैं। सब बेवकूफ बनाने के काम हैं। हथकड़ियां चाहे हाथों में लगी हो या पल्लू में। हथकड़ियां चाहे लोहे की हो या सोने की। कंगन जैसी हो या गले में मंगलसूत्र जैसी या न मालूम कैसी-कैसी। खुद लगा ली हो हथकड़िया या किसी के प्यार में पड़कर उसी से कहा की लगा दो हथकड़ियां...प्लीज।
 
 
अब सवाल यह उठता हैं कि प्रेम या विवाह क्या बंधन हैं? यदि प्रेम नहीं हैं तो फिर बंधन ही होगा, क्योंकि आपस में प्रेम होना अर्थात स्वतंत्रता और आनंद का होना है किंतु यदि झूठ-मूठ का प्रेम है दिखावे का प्रेम है तो फिर वह प्रेम कैसे हो सकता है, महज आकर्षण, चाहत या समझौता।
 
 
बेवफाई का डर...
खैर यह तो बात प्यार के इजहार से जुड़ी है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इजहार कर ही दिया तो फिर नया खेल शुरु होता है जो कुछ दिन तक तो अच्छे अहसास के साथ चलता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसमें टेंशन पैदा होने लगता है। बेवफाई का डर भीतर ही भीतर सालता रहता है। यदि प्यार में बेवफाई का सामना करना पड़े तो फिर दिल के दौरे की संभावना बढ़ सकती है बशर्तें की आप अपने प्रेमी या प्रेमिका से कितने जुड़े हैं यह इस पर तय होता है।
 
 
लेकिन यह भी सच है...
तमाम शोध और तमाम बेवकूफी भरे वाक्य प्यार की ताकत को झुठला नहीं सकते और ना ही उसे सेक्स से जोड़ सकते हैं। सेक्स आपके जीवन का अहम हिस्सा हो सकता है लेकिन प्यार का स्थान उससे कहीं ऊंचा है। मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया था किसी गलत वजह से नहीं। पवित्र प्रेम के बारे में सोचने वाले सही है। प्यार और विश्वास किसी भी दंपति के जीवन का आधार है। दांपत्य जीवन में प्यार का मतलब सिर्फ सेक्स से नहीं होता।
 
 
विद्वान लोग कहते हैं कि दो मित्रों का एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता हो जाना ही प्रेम है। एक-दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकारना जिस रूप में वह हैं। दोनों यदि एक-दूसरे के प्रति सजग हैं और अपने साथी का ध्यान रखते हैं तो धीरे-धीरे प्रेम विकसित होने लगेगा। अंतत: देह और दिमाग की सारी बाधाओं को पार कर जो व्यक्ति प्रेम में स्थित हो जाता है सच मानो वही सचमुच का प्रेम करता है। उसका प्रेम आपसे कुछ ले नहीं सकता आपको सब कुछ दे सकता है। तब ऐसे में प्रेम का परिणाम संभोग को नहीं करुणा को माना जाना चाहिए।
 
 
सिन्क्रॉनिसिटी को समझो
एक तो होता है लव फिवर और दूसरा होता है लव अटैक। इन दोनों से श्रेष्ठ है सिन्क्रॉनिसिटी इमोशन। इसके होने पर न तो फिवर होता है और न ही अटैक, क्योंकि इसमें किसी प्रकार की चाहत या आकर्षण नहीं होता। ये आंखों में देखने से घटित होता है, और बहुत चुपचाप। जब भी कोई बड़ी घटना घटती है पूरा वर्तमान कुछ क्षण के लिए मौन हो जाता है। जैसे परमात्मा आपके सामने अचानक आ धमके और आपसे पूछ बैठे कहो कैसे हो गुरु?
 
 
सिन्क्रॉनिसिटी इमोशन। इस शब्द के कई अर्थ है और सभी अर्थपूर्ण है। वैसे तो इसका अर्थ है सहकालिक, समकर्मिक। इस शब्द के अविष्कारक मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव जुंग थे। ओशो ने इस शब्द के अर्थ को बहुत अच्छे से समझाया है वे मानते थे कि दो हृदयों का अकारण एक साथ धड़कना या फिर एक खास लय बद्ध भाव में होना ही सिन्क्रॉनिसिटी है। संयोगवश कभी ऐसा कोई व्यक्ति मिल जाता है जिसके साथ पटरी बैठ जाती है।
 
 
इसे पहली नजर का प्यार नहीं कह सकते, क्योंकि पहली से यह पता चलता है कि दूसरी भी नजर हो सकती है। कभी ऐसा होता है कि हम किसी से मिले या उसे देखें, चाहे उससे बातें न भी करें। बस देखें। ऐसा प्यार हृदय के किसी गहरे तल में होता है जबकि चित्त स्थिर रहा हो। सिन्क्रॉनिसिटी इमोशन एक ऐसा भाव है कि किसी अनजान या जाने-पहचाने के प्रति अचानक उभरता है। अवचेतन के किसी गहरे में से पुकार उठती है कि शायद यही सही रास्ता है। इस प्यार में तड़फ होती है, जुदाई या मिलन की नहीं। इस तरह के प्रेम को प्रेम नहीं कह सकते। सिर्फ तड़फ या टीस कह सकते हैं। बस उसकी उपस्थिति ही हमारे लिए महत्वपूर्ण होती है। चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। आपने देखा होगा कि कभी-कभी दो लोग एक साथ एक ही शब्द, एक ही क्षण में कहते हैं...हलो या ओ.के.। यह संयोगवश घटित होता है। यही 'सिन्क्रॉनिसिटी' है।
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

'हींग का पानी' पीने के ऐसे असरदार फायदे जो आपने कभी नहीं सुने होंगे