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वसंत उत्सव बनाम वेलेंटाइन डे : न कोई छोटा न बड़ा

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डॉ. दीपा मनीष व्यास

वसंत ऋतु का प्रारंभ अपने आप में एक अजब-सी खुमारी के साथ होता है। मां सरस्वतीजी की उपासना के साथ इसका स्वागत किया जाता है। विद्यार्थियों के लिए अपनी परंपरा व संस्कृति से जुड़ने का एक और आयोजन होता है, वहीं प्रेम के पुजारियों के लिए मदमस्त उमंगों में बहने का दौर शुरू होता है। ये भी संयोग ही है कि हमारी भारतीय संस्कृति-परंपरा का परिचायक बसंतोत्सव के साथ ही साथ पाश्चात्य संस्कृति का प्रेमोत्सव वेलेंटाइन -डे भी आता है।

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सोचा जाए तो ये दोनों प्रेमोत्सव ही हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम का स्वरूप याद करते हुए कई प्रेमी युगल इस ऋतु में करीब आते हैं, कसमों-वादों के बंधन में बंध जाते हैं, वहीं वेलेंटाइन -डे पर युवा अपने प्रेम का इजहार करते हैं। जहां बसंतोत्सव पूरे माह मनाया जाता है, वहीं वेलेंटाइन  सप्ताह मनाया जाता है। 
 
अब तो यह डे केवल युवाओं का नहीं रह गया, बड़े-बूढ़े सभी उत्साह से मनाते हैं और क्यों न मनाएं? भई, यदि आप अपने बच्चों, बड़ों, बुजुर्गों, पति व प्रेमी के प्रति अपने प्रेम का इजहार करते हो तो इसमें गलत क्या है? 'प्रेम' करना पाप तो नहीं है ना? ये तो ईश्वर का वह वरदान है, जो संपूर्ण सृष्टि में दिखाई देता है, चाहे प्रकृति हो मनुष्य हो या जानवर। तो परहेज क्यों?
 
वेलेंटाइन -डे के करीब आते ही भारतीय व पाश्चात्य संस्कृति को लेकर एक घोर वाक्‌युद्ध या साइबर-युद्ध कहें तो वॉट्सएप और फेसबुक-युद्ध प्रारंभ हो जाता है। इस प्रेम-दिवस के विरोध में आवाजें बुलंद हो जाती हैं। माना कि कई युवाओं ने इसका स्वरूप बिगाड़ दिया है। वे अशोभनीय हरकतें करते हैं, परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि हम प्रेम के इस दिवस का खंडन ही करने लग जाएं। वो भी इसलिए कि यह पाश्चात्य संस्कृति से आया है।
 
हद है तो भई यह भी सोचो ना कि हमारे भारतीय त्योहार कौन-सी अपनी गरिमा बचाए हुए हैं? दीपावली पर पटाखों का प्रदूषण, होली पर रंग छींटने को लेकर की जाने वाली अभद्रता, महाशिवरात्रि पर भांग के नशे में डूबे भंगेड़ी और यदा-कदा धार्मिक उपहास उड़ाते वॉट्सएप संदेश क्या ये सब उचित है? अगर इतना ही संस्कृति और परंपरा की रक्षा का दायित्व निभाने का शौक है, तो पहले अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य निभाते हुए इन भारतीय त्योहारों को मनाने पर पाबंदी लगा दो या फिर शालीनता से मनाने की शपथ ले लो।
 
आज हर जगह अलग-अलग समूह पर बस इसी विषय पर सबको चर्चा करना है कि 'वेलेंटाइन डे' मनाना उचित है या नहीं? अगर आपने कह दिया कि उचित है, तो एक बड़ा वर्ग आपके पीछे लग जाएगा और आपको एक तरह से संस्कृति के पतन का कारण बता देगा, यदि आपने विरोध किया तो युवा-बच्चे आपको पिछड़ेपन का शिकार मान आपसे बहस करेंगे और आपको 'कुछ तो भी हो' कह दिया जाएगा।
 
कितना हास्यास्पद लग रहा है ना? अरे क्या भारतीय-पश्चिमी संस्कृति में उलझे हो, खुशी का मौका है जी भर जीओ, खूब प्रेम बांटो, बड़ों को, छोटों को, सबको उपहार दो। एक गुलाब का फूल, चॉकलेट और अन्य उपहार देने से यदि चेहरे पर प्यारी-सी मुस्कान आ जाती है, तो बुराई क्या है दोस्तों?
 
वसंतोत्सव में प्रेमोत्सव को डूब जाने दो। मत पड़ो बहस में। बस, मर्यादित आयोजन कर अपने साथ असहाय, निर्बलों को भी खुशियां बांट दो। अपने बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलो ताकि वो जो करें, आपके सामने हो न कि पीठ पीछे। माता-पिता को उपहार दो, पूरे सप्ताह दो, फिर देखिए क्या रौनक होती है उनके चेहरों पर।
 
अपने जीवनसाथी को खूब प्यार करें, अहसास दिलाए कि वे कितना प्यार करते हैं, फिर देखिए दिल की धड़कन कैसा गीत गाती है। 
 
वसंतोत्सव/ प्रेमोत्सव न कोई छोटा न बड़ा। तो चलिए सभी को वसंत ऋतु की बधाई और वेलेंटाइन -डे की शुभकामनाएं ..... 

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