माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आंरभ हो जाता है अत: इसे ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता हैं। मां सरस्वती के वंदन का दिन है यह वसंत का प्रथम दिन, यानि वसंत पंचमी।
प्रकृति अपने नए आवरण में दिखने लगती है, अपना पुराना आवरण उतार कर। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ने लगते हैं। नए गुलाबी रंग के पल्लव अवलोकित होने लगते हैं। यह दिन ज्ञान एवं बुद्धि की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिन है।
वसंत पंचमी के दिन आम तौर पर पीले वस्त्र पहन कर ही पूजा करने का विधान हैं। इस पूजा में अग्र भाग में गणेश जी की स्थापना एवं पृष्ठ भाग में वंसत(जौ व गेहूं की बाली के पुंज को जल से भरे कलश में डंठल सहित) स्थापित किया जाता हैं।
अग्र भाग में स्थापित गणेशजी का पूजन करने के पश्चात् पृष्ठ भाग में वसंत पुंज द्वारा रति और कामदेव का पुजन किया जाता हैं। कहा जाता है कि रामदेव को फल, पुष्प अर्पित करने से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। सामान्यतः हवन में केसर या हल्दी युक्त हलवे की आहुति दी जाती है।
वसंत पंचमी के दिन किसान नए अन्न में गुड़ और घी मिलाकर अग्नि को अर्पित करते हैं। दो अच्छी फसल होने का आग्रहसुचक होता हैं। इस दिन केसरयुक्त या गुड़ मिला कर मीठे चावल बनाने का भी प्रचलन है।
इस दिन गणेशजी, सूर्य, विष्णु तथा महादेव का पूजन करने के बाद वीणा वादिनी सरस्वती मां के पूजन का विधान है। मां सरस्वती हम सब पर बुद्धि, विद्धया का आशीव आशीर्वाद दें, ताकि जीवन-पथ पर हम सहज रुप से अग्रसर हो सके।