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वसंत पंचमी : बुद्धि, ज्ञान और विद्या का मंगल पर्व

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माघ शुक्ल पंचमी का आगमन नक्षत्र और चंद्र की स्थिति विशेष से होता है। इस दिन ज्ञान या विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का महत्व है। सरस्वती संगीत, स्वर, ताल, लय, राग-रागिनी की जननी हैं। सप्त स्वरों द्वारा सरस्वती का स्मरण किया जाता है इसलिए इसको स्वरा की संज्ञा दी गई है।
वीणावादिनी है सरस्वती : सरस्वती पूजा हेतु प्रात: कलश (तांबे, चांदी के पात्र) पूर्व या ईशान दिशा में रखना चाहिए। श्वेत वस्त्रधारिणी सरस्वती की पूजा में अक्षत, दूध, दही, श्वेत तिल का लड्डू, शहद, चंदन, श्वेत पुष्प, नारियल आदि का उपयोग कर सकते हैं। पुस्तक एवं लेखनी में सरस्वती का निवास माना गया है अत: इस दिन धार्मिक ग्रंथ, विद्याध्ययन, पुस्तक तथा कलम की पूजा भी करनी चाहिए।
 
 
संक्षिप्त विधि : आसन पर पूर्व या ईशान दिशा की ओर मुंह करके बैठें। दाहिने हाथ में जल लेकर कहें- 'उपलब्ध सामग्री के साथ ज्ञान, विवेक, विद्या सिद्धि के लिए मैं आपका पूजन करूंगा।' इतना कहकर जल पृथ्वी पर छोड़ दें। उपलब्ध सामग्री सरस्वती को मंत्र बोलते हुए अर्पित करें।
 
मंत्र- 'श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै नम:'
 
सरस्वती को प्रसन्न करने हेतु दिए यंत्र का भी प्रयोग कर सकते हैं। भोजपत्र या चांदी पर बनाकर पहनने से लाभ होता है। इस यंत्र को श्वेत चंदन, अक्षत से बनाकर पूजा करना भी उत्तम है।
 
वसंत ऋतु के आगमन पर वासंती रंग के (पीले) वस्त्र (विशेषत: महिला एवं कन्या) पहनने चाहिए। इस दिन पीली सरसों, भोजन में पीले रंग के खाद्यान्नों को शुभ माना गया है। ज्योतिष की दृष्टि से राहु के कुप्रभावों को रोकने के लिए भी सरस्वती पूजा का विशेष महत्व है। राहु जन्म कुंडली में द्वितीय, अष्टम, पंचम द्वादश भाव में हो या राहु की दशा अंतरदशा चल रही हो, तो सरस्वती पूजा द्वारा आकस्मिक हानि से रक्षा होती है। 

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