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शुभ और मंगलमयी होती है सरस्वती साधना, पढ़ें विधान

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जीवन में पग-पग पर परीक्षाएं हैं। इनमें सफलता पाने के लिए तीव्र स्मरण शक्ति और व्यक्तित्व में निखार नितांत आवश्यक है, लेकिन सभी को ये गुण प्राप्त नहीं होते। यदि आप भी इन गुणों से ‍वंचित हैं और चाहते हैं कि ये गुण आपके जीवन में समा जाएं, तो आपको सरस्वती साधना सिद्धि अवश्य ही करनी चाहिए।



साधना विधान 
 
* यह साधना प्रयोग किसी भी पुष्य नक्षत्र में प्रारंभ की जा सकती है। वसंत पंचमी पर विशेष रूप से करें।
 
* शुभ मुहूर्त में किसी शांत स्थान या मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
 
* अपने सामने लकड़ी का एक बाजोट रखें। बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाएं तथा उस पर सरस्वती देवी का चित्र लगाएं।
 
* उस बाजोट पर एक तांबे की थाली रखें। यदि तांबे की थाली न हो, तो आप अन्य पात्र रखें।
 
* इस थाली में कुंकुम या केसर से रंगे हुए चावलों की एक ढेरी लगाएं।
 
* अब इन चावलों की ढेरी पर प्राण-प्रतिष्ठित एवं चेतनायुक्त शुभ मुहूर्त में सिद्ध किया हुआ 'सरस्वती यंत्र' स्‍थापित करें।
 
इसके पश्चात 'सरस्वती' को पंचामृत से स्नान करवाएं। सबसे पहले दूध से स्नान करवाएं, फिर दही से, फिर घी से स्नान करवाएं, फिर शकर से तथा बाद में शहद से स्नान करवाएं। 
 
* केसर या कुंकुम से यंत्र तथा चित्र पर तिलक करें।
 
* इसके बाद दूध से बने हुए नैवेद्य का भोग अर्पित करें।
 
* अब आंखें बंद करके माता सरस्वती का ध्यान करें तथा सरस्वती माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जाप करें-
 
ॐ श्री ऐं वाग्वाहिनी भगवती
सन्मुख निवासिनि
सरस्वती ममास्ये प्रकाशं
कुरू कुरू स्वाहा:
 
* प्रयोग समाप्ति पर माता सरस्वती से अपने एवं अपने बच्चों के लिए ऋद्धि-सिद्धि, विद्यार्जन, तीव्र स्मरण शक्ति आदि के लिए प्रार्थना करें।
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