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पीत रंग वासन्ती शाम

डॉ. ओमप्रकाश सिंह

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हमें फॉलो करें वसंत ऋतु
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छत पर ध्यान लगा बैठी है
पीत रंग वासन्ती शाम।
प्रिय के पाँव लौट आए हैं
मिलने को खिड़की के पास

प्यासे होंठ चूम लेते हैं
कभी हँसी में भरी मिठास

गूँगी रात आज सुनती है
पुरवाई के गीत अनाम।
आँखों पर जा बसी चाँदनी
चमक उठे सपनों के घर

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परछाई ऊँचे कद होकर
पसर गई है राह बिसर
और चाँद के हाथ
न जाने पिला रहे
किस-किसको जाम।

छत पर ध्यान लगा बैठी है
पीत रंग वासन्ती शाम।

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