रसोई की सबसे बेहतरीन जगह दक्षिण-पूर्व है, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है। अगर दाम्पत्य जीवन के तालमेल में कमी के संकेत मिलते हों तो रसोई तथा शयन कक्ष की वास्तु योजना पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
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अग्नि तत्व या रसोई से संबंध रखने वाली वस्तुओं की सबसे अच्छी व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में ही होती है। टेलीविजन, कम्प्यूटर, हीट-कन्वेटर या अन्य ऐसे उपकरण जो एक भवन में सभी या अधिक स्थानों पर हो सकते हैं या ऐसे दूसरे विद्युत उपकरण, जब विभिन्न कमरों में रखने हों तो दिशा ज्ञान प्रत्येक कमरे पर प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर-पूर्व में स्थित किसी कमरे में विद्यार्थी के कम्प्यूटर का उचित स्थान उस कमरे के दक्षिण-पूर्व में होगा। इसी तरह रसोई का सबसे बेहतर स्थान दक्षिण-पूर्व में, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है, किन्तु रसोई के खर्चों तथा मानसिक चिंताओं में बेवजह वृद्धि हो जाती है। यदि जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्र मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के असामंजस्य के संकेत देता हो और ऐसे अनुभव भी हो रहे हों तो अन्य कारणों के साथ किचन तथा बैडरूम के वास्तु पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
रसोई में कुकिंग रेंज पूर्व में ऐसे रखें कि खाना बनाने वाले के सामने पूर्व दिशा पड़े। फूज्ड प्रोसेसर, माइक्रोवन, फ्रिज इत्यादि की व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। पानी संबंधी कार्य जैसे वाटर फिल्टर, डिशवाशर, बर्तन धोने का सिंक आदि उत्तर-पूर्व वाले भाग में होने चाहिए। पूर्व की दीवार में वॉल कैबिनेट न हों तो बेहतर है यदि जरूरी हो तो यहाँ भारी सामान न रखें। खाने-पीने का सामान उत्तर-पश्चिम दिशा में या रसोईघर के उत्तर-पश्चिम भाग में स्टोर करें जिस दरवाजे से अधिक आना जाना हो या मुख्य द्वार यदि रसोईघर के ठीक सामने हो साथ ही पति पत्नी के ग्रह-नक्षत्र कलह का इशारा देते हैं तो बेहतर होगा कि दरवाजों की जगह बदलवाएँ वरना उक्त परिस्थितियाँ आग में घी का काम करती हैं।
वास्तुशास्त्र में वेध काफी महत्व रखता है। यह बाधा या रूकावट के संकेत देता है। भवन अथवा मुख्य द्वार के सामने अगर पेड़, खंभा, बड़ा पत्थर आदि या जनता द्वारा प्रयोग होने वाले मार्ग का अंत होता है तो उसका विपरीत असर पड़ता है। जब वेध व भवन के बीचों-बीच ऐसी सड़क हो जिसमें आम रास्ता हो तो वेध का प्रभाव पूरी तरह तो नहीं मगर बहुत कुछ कम हो जाता है। घर पर भी किसी कमरे के दरवाजे के सामने कोई वस्तु मसलन जसे सोने के कमरे के सामने ऐसी सजावटी वस्तुएँ तनाव और चिंताओं के कारण या नींद में बाधक हो सकती है।
भवन के बीचों-बीच का हिस्सा ब्रह्म स्थान कहा जाता है। इसे खाली रखा जाना चाहिए। जैसे फर्नीचर या कोई भारी सामान यहाँ पर सेहत व मानसिक शांति को प्रभावित करते हैं। ब्रह्मस्थान वाले क्षेत्र में छत में भारी झाड़ फानूस भी नहीं लटकाएँ जाएँ। इस हिस्से में पानी की निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था का निषेध है, यह आर्थिक नुकसान का संकेतक है।
घर, कार्यालय या संस्था के मुखिया आदि के बैठने, काम करने या सोने की जगह दक्षिण-पश्चिम में बहुत अच्छी मानी गई है। ऐसी स्थिति में उनका अपन से छोटे सदस्यों, बच्चों तथा कर्मचारियों, प्रबंधकों आदि पर बेहतर नियंत्रण रहता है। घर पर मेहमान या आफिस में मुलाकात करने वालों के बैठने का इंतजाम कुछ इस तरह होना चाहिए कि उनका मुँह दक्षिण या पश्चिम की ओर होना चाहिए तथा गृहस्वामी या वरिष्ठ अधिकारी उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करते हुए बैठें। बच्चे यदि माता-पिता के अनुशासन में न हों और उनके लिए चिंता का कारक हों तो उत्तर-पूर्व दिशा में बच्चों के सोने व पढ़ने की व्यवस्था करें। टेलीफोन, फैक्स का उचित स्थान उत्तर-पूर्व दिशा में है।
वास्तुशास्त्र के साथ ज्योतिष का ज्ञान होना आवश्यक है। आजकल ज्योतिष और वास्तुशास्त्र एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में उभर कर आ रहे हैं। अधकचरे वास्तुशास्त्री अजीबो-गरीब उपाय बतलाते हैं। अतः वास्तुशास्त्री का चुनाव सावधानी से करिए। लोगों की परेशानियों से आनन-फानन छुटकारा दिलवाने का बढ़-चढ़कर दावा करने वालों से हमेशा सावधान रहें।
वास्तुशास्त्र का प्रयोग ज्योतिष को ध्यान में रखते हुए करना अधिक लाभदायक होता है। यह ध्यान रखें कि जीवन सुख-दुःख का मिश्रण है, अतः अंधविश्वास, धर्म, आदि से हटकर इन विधाओं का वैज्ञानिक पक्ष पहचानना सीखें।