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ये 10 तरह के घर, मस्तिष्क पर होता बुरा असर

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वैसे दिशाएं 10 होती हैं, लेकिन एक 11वीं दिशा भी होती है जिसे मध्य में माना जा सकता है अर्थात आप जहां खड़े हैं। वास्तुशास्त्र में उक्त सभी दिशाओं का महत्व है। घर में सुख-समृद्धि के लिए हमेशा एक्सपर्ट्स की राय लेने की सलाह दी जाती है। हम घर पर लाखों खर्च कर देते हैं, लेकिन कुछ पैसों के लिए एक्सपर्ट की राय नहीं लेते जबकि इनसे मिलने वाली राय बहुमूल्य होती है। 
कैसा हो हिन्दू घर, जानिए 10 नियम...
 
ये 11 दिशाएं : ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य और उत्तर। इसके अलावा 3 दिशाएं ऊपर, नीचे और मध्य में।

वास्तुशास्त्र विशेषज्ञों का मानना है कि घर बनाते समय यदि किसी कमरे, रसोईघर या फिर स्नानघर का स्थान गलत चुन लिया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली नकारात्मक ऊर्जा अपने साथ पारिवारिक उन्नति को ले डूबती है।

आओ जानते हैं ऐसी 10 बातें जिनसे आपके परिवार में गृहकलह बढ़ सकती है, परिवार टूट सकता है, बीमारी बढ़ सकती है, हर तरह की प्रगति रुक सकती है या आप बेघर हो सकते हैं। जल्द से जल्द बेघर होना अच्छी बात है, कम से कम बुरे घर से छुटकारा तो मिला। अब वास्तु अनुसार घर तलाश करें।
 
अगले पन्ने पर पहले तरह का घर...
 

आपके घर की दिशा कौन-सी है? : यह समझना जरूरी है कि उत्तर दिशा सकारात्मक ऊर्जा और ठंडी हवा का स्रोत है जबकि दक्षिण दिशा नकारात्मक ऊर्जा और गर्म हवाओं का स्रोत है। अब आप ही तय करें कि आपके घर का द्वार-खिड़की किस दिशा में होना चाहिए।
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पहला पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य दिशा में होना चाहिए या कि दूसरा पश्चिम, वायव्य, उत्तर और ईशान में होना चाहिए। घर ही नहीं, यदि संपूर्ण शहर की दिशा पश्चिम, वायव्य, उत्तर और ईशान में होगी तो संपूर्ण शहर के लोगों का दिमाग भी शांत और प्रसन्नचित्त रहेगा। यदि आपके घर की दिशा पूर्व, आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य में से किसी में रही तो आप किसी न किसी परेशानी से घिरे रहेंगे। हो सकता है कि आपके दिमाग में इसके चलते अनावश्यक बेचैनी रहती हो।
 
कारण सिर्फ इतना है कि आग्नेय, दक्षिण या नैऋत्य दिशा वाले घर की दक्षिण दिशा का भाग दिनभर तपता रहता है और निरंतर अल्ट्रावॉयलेट किरणों का घर में प्रवेश होता रहता है जिसके चलते घर का ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है। इसी कारण घर के सभी सदस्यों के व्यवहार में चिढ़चिढ़ापन आ जाता है। ‍चूंकि महिलाएं घर में अधिक रहती हैं, तो उनके किसी गंभीर बीमारी के चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है या हो सकता है कि गृहकलह के चलते कोई होनी-अनहोनी हो जाए।
 
असल में आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य या पश्‍चिम दिशा में कोई दोष नहीं होता है। इन दिशाओं में घर का मुख हो तब भी आप उन्नत और खुशहाल हो सकते हैं। बस, शर्त यह है कि घर में इसके अलावा कोई अन्य वास्तुदोष मौजूद नहीं हो।
 
अगले पन्ने पर दूसरे तरह का घर...
 

जिस घर का खराब है मध्य भाग : घर की दिशाओं में सबसे आखिरी और बेहद महत्वपूर्ण दिशा है घर की मध्य दिशा। यह दिशा घर के बिलकुल बीचोबीच होने के कारण घर की हर दिशा से जुड़ी होती है इसीलिए किसी भी दिशा का नकारात्मक प्रभाव इस दिशा पर होना आम बात है।
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वास्तुशास्त्र का मानना है कि घर या कार्यालय के बिलकुल मध्य स्थान का व्यक्ति की जिंदगी से गहरा संबंध होता है। बहुत से घरों में देखा गया है कि बीच में गड्ढा होता है। हो सकता है कि घर के बीचोबीच कोई खंभा गड़ा हो, टॉयलेट या वॉशरूम बना हो या किसी भी प्रकार का भारी सामान रखा हो। 
 
अक्सर लोग यदि 15 बाई 50 या 20 बाई 60 का मकान है, तो उसके बीचोबीच लेट-बाथ बना लेते हैं। ऐसे घरों में कुछ न कुछ घटनाक्रम चलते ही रहते हैं। बीमारी, दुख पीछे लगे ही रहते हैं या घर के सदस्यों के दिमाग में शांति नहीं रहती है। परेशानियों से घिरे रहने वाले इस घर के मध्यभाग को ठीक कर देने से सभी ठीक होने लगता है। मध्य भाग खराब है तो यह केतु का स्थान बन जाता है।
 
इस स्थान पर भारी सामान रख देते या निर्माण कर दिया जाता है तो उसे विश्व रचयिता ब्रह्मा का निरादर माना जाता है। इससे घर-परिवार में सहजता और सृजनात्मक गतिविधियों का ह्रास होता है। घर में ऐसा हो तो परिवार में सुख-शांति घटती है। रहने वालों के बीच दूरियां बढ़ती हैं। संबंधों में गरमाहट कम होती है।
 
अगले पन्ने पर तीसरे तरह का घर...
 

घर की छत कैसी हो?
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* घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न हो। जैसे आजकल घर की छत में लोग दो-बाइ-दो का एक हिस्सा खाली छोड़ देते हैं उजाले के लिए। इससे घर में हमेशा हवा का दबाव बना रहेगा, जो सेहत और मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालेगा।
 
*तिरछी छत बनाने से बचें- छत के निर्माण में इस बात का ध्यान रखें कि वह तिरछी डिजाइन वाली न हों। इससे डिप्रेशन और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
 
* घर की छत की ऊंचाई भी वास्तु अनुसार होना चाहिए।। यदि ऊंचाई 8.5 फुट से कम होती है तो यह आपके लिए कई तरह की समस्याएं लेकर आती है और जीवन में आगे बढ़ना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा है। घर यदि छोटा है तो छत की ऊंचाई कम से कम 10 से 12 फुट तक होनी चाहिए। इससे ज्यादा ऊंची रखने के लिए वास्तुशास्त्री से संपर्क करना चाहिए। 
 
* घर की छत पर किसी भी प्रकार की गंदगी न करें। यहां किसी भी प्रकार के बांस या फालतू सामान भी न रखें। जिन लोगों के घरों की छत पर अनुपयोगी सामान रखा होता है, वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नकारात्मक होते हैं। परिवार में भी मनमुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं।
 
* घर की छत पर रखा पानी का टैंक किस दिशा में हो, यह जानना जरूरी है। उत्तर-पूर्व दिशा पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है, इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि की दिशा है इसलिए भी इसे पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है। 
 
अगले पन्ने पर चौथे तरह का घर...
 

घर का दरवाजा : वैसे घर का दरवाजा पूर्व, ईशान, उत्तर या पश्‍चिम दिशा में हो तो उत्तम है। घर का दरवाजा दो पल्ले वाला होना चाहिए और दरवाजे भी सम संख्या में होना चाहिए।
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घर किस दिशा में है यह तो सबसे महत्वपूर्ण है ही, लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि कुछ ऐसे घर होते हैं जिनके प्रवेश द्वार पर खड़े होकर घर के अंतिम कमरे को भी आसानी से देखा जा सकता है।
 
अर्थात प्रथम रूम के बाद दूसरे रूम का दरवाजा और फिर तीसरे रूम का दरवाजा भी एक ही सीध में होता है। इसके अलावा अंत में पीछे के दरवाजे से घर के पिछले हिस्से का दृश्य भी आप देख सकते हैं। ऐसे घरों में हवा बाहर से प्रवेश करती है और भीतर के अंतिम द्वार से होते हुए पुन: बाहर निकल जाती है।
 
ऐसे घर के सदस्यों के दिमाग कभी स्थिर नहीं रहते और उनमें वैचारिक भिन्नता भी बनी रहती है। सबसे बड़ी बात यह कि हवा के आने-जाने की तरह ही उनकी जिंदगी में भी एक के बाद एक घटनाक्रमों का आना-जाना लगा रहता है। परिवार में उथल-पुथल मची रहती है। अधिकतर पैसा बीमारी में ही खर्च हो जाता है। किसी बड़ी घटना का इंतजार करने से अच्छा है कि दरवाजों में मोटे कपड़े का पर्दा लगा दें और पीछे का दरवाजा हमेशा बंद ही रखें।
 
अगले पन्ने पर पांचवें तरह का घर...
 
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घर के बाहर के नकारात्मक पौधे : आपके घर की दिशा और वास्तु अच्छा है लेकिन घर के आसपास नकारात्मक ऊर्जा विसरित करने वाले पेड़-पौधे हैं तो इसका आपकी जिंदगी पर गहरा असर होगा।
 
कांटेदार पौधे, वृक्ष और बेलें नहीं होना चाहिए, जैसे बबूल का वृक्ष, कैक्टस के पौधे और जंगली बेलें आदि। इसके अलावा घर के आसपास किसी कटे हुए वृक्ष का ठूंठ भी नहीं होना चाहिए। इससे भी घर के वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा को बल मिलता है।
 
अगले पन्ने पर छठे तरह का घर...
 

खिड़कियों का रखें ध्यान : इस बात की जांच करें कि आपके घर में दरवाजे और खिड़कियां विषम संख्या में तो नहीं हैं। अगर ऐसा है तो किसी एक दरवाजे या खिड़की को बंद कर दें और उनकी संख्या को सम कर दें।
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इसके अलावा जिस घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर खिड़कियां होती हैं, वह वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है। अगर आपके घर में भी ऐसा है, तो आप इन दोनों खिड़कियों पर गोल पत्ते वाले पौधे लगाएं। साथ ही कांटेदार एवं नुकीले पत्तियों वाले पौधों से बचें।
 
अगले पन्ने पर सातवें तरह का घर...
 
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घर की सीढ़ियां : वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक नुकसान, स्वास्थ्य की हानि, नौकरी एवं व्यवसाय में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
 
इस दिशा में सीढ़ी का होना अवनति का प्रतीक माना गया है। दक्षिण पूर्व में सीढ़ियों का होना भी वास्तु के अनुसार नुकसानदेह होता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है।
 
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तलघर : जिन घरों में तलघर होता है उसे शनि का घर कहा गया है। यदि वहां घर के आसपास कीकर, आम या खजूर का वृक्ष है तो यह और पक्का हो जाएगा कि यह शनि का घर है। तलघर वाले घर के पीछे की दीवार कच्ची हो सकती है। यदि वह ‍दीवार गिर जाए तो शनि के खराब होने की निशानी मानी जाती है।
 
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यदि तलघर है तो इस तलघर को वास्तु अनुसार बनाएं या वह जैसा है उसे वैसा ही पड़ा रहने दें। उसमें उजाले के लिए कभी कोई उजालदान न बनाएं।
 
सामान्‍यत: भवन में सीलर्स और बेसमेंट में कमरे बनाने से बचना चाहि‍ए, जो रोड लेवल से नीचे हों। तलघर बनाना जरूरी हो तो वास्‍तु के अनुसार तलघर या बेसमेंट बनाते समय कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाहि‍ए।
 
बेसमेंट को कुछ हद तक रोड लेवल के ऊपर रखें। पूरे प्‍लॉट को कवर करने वाला बेसमेंट उचि‍त होता है। अगर बेसमेंट के कि‍सी एक हि‍स्‍से में ही तलघर बनाना हो तो उसे केवल उत्तर, उत्तर-पूर्व और पूर्वी दि‍शा में ही बनाएं। तलघर का प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्वी दि‍शा में होना चाहि‍ए। 
 
तलघर की दक्षि‍ण-पश्चि‍मी दि‍शा का उपयोग भारी सामान के स्‍टोरेज के रूप में कि‍या जाना चाहि‍ए। उत्तर- पश्चि‍मी और दक्षि‍ण-पश्चि‍मी भाग नौकरों के रहने या कार पार्किंग के लि‍ए उपयोग कि‍या जाना चाहि‍ए।
 
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घर का फर्श : घर में फर्श कैसा हो, इससे भी आपकी जिंदगी प्रभावित होती है। आप कौन-सी टाइल्स लगा रहे हैं या कि मार्बल, कोटा स्टोन लगा रहे हैं या कि मोजेक? यह किसी वास्तुशास्त्री से पूछना जरूरी है। कोटा स्टोन गर्मियों के लिए फायदेमंद है लेकिन ठंड और बारिश में यह नुकसानदायक ही सिद्ध होगा। इसी तरह टाइल्स भी सोच-समझकर ही लगाएं।
 
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इसके अलावा यदि आपके घर के उत्तर-ईशान के भाग का फर्श पश्चिम-वायव्य के फर्श से लगभग 1 फीट नीचा है और वायव्य की तुलना में नैऋत्य कोण 1 फीट और अधिक नीचा है, मकान के अंदर का दक्षिण-नैऋत्य का भाग उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशा की तुलना में नीचा है, मकान के पूर्व-ईशान में लगभग डेढ़ फीट ऊंचा शौचालय है, घर में बाहर से ऊपर जाने के लिए उत्तर दिशा में पश्चिम-वायव्य से सीढ़ियां बनी हुई हैं, इसके अलावा घर के अंदर से भी दुकान में आने-जाने के लिए आग्नेय कोण में सीढ़िया हैं, इसी के सामने पश्चिम नैऋत्य में एक द्वार घर के अंदर जाने के लिए बना है तो ये सभी महत्वपूर्ण वास्तुदोष मिलकर भयंकर तरह की दुखद घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं।
 
अगले पन्ने पर दसवें तरह का घर...
 

आग्नेय कोण में स्थित टैंक कर देगा बर्बाद : यदि आपका घर पूर्व दिशा में है तो अधिकतर लोगों के घरों के आग्नेय कोण में बाहर की ओर भूमिगत टैंक होता है, जहां पानी को स्टोर किया जाता है। यह वास्तु के अनुसार सही नहीं है।
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टैंक, बोरिंग या कुआं उत्तर अथवा पूर्व दिशा को छोड़कर अन्य दिशा में है, तो यह मानसिक तनाव का कारण ही बनेगा। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा। पश्चिम की तुलना में पूर्व दिशा में और दक्षिण की तुलना में उत्तर दिशा में ज्यादा खुली जगह होनी चाहिए।

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